Book Title: Jin Pujan
Author(s): ZZZ Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 6
________________ तीन लोक में सब जीवों को, कुछ पल सुख का भान हुआ। जन्म हुआ है आदि’ प्रभु का, देवों को यह ज्ञान हुआ।। चौत वदी नवमी का दिन था, नाभिराय गृह जन्म लिया। गिरि सुमेरु पर पांडुक वन में, क्षीरोदधि से न्हवन किया।।2।। ॐ हीं चौत्रकृष्णनवम्यां जन्ममंगलमंडिताय श्री आदिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा। जन्म कलयाणक की खुशियाँ थी, तप संयम में बदल गई। नीलांजन का नृत्य देख, दृष्टि शिव पाने मचल गई।। चौत कृष्ण की नवमी शुभ थी, पंच मुष्टि कचलोंच किया। जय-जय ऋषभनाथ जिनवर ने, उत्तम मुनि पद धार लिया ।।3।। ॐ हीं चौत्रकृष्णनवम्यां तपोमंगलमंडिताय श्री आदिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा। फाल्गुन वदी एकादशी को, प्रभु चार घातिया नाश किया। कर पुरुषार्थ प्रबल जिनवर ने, केवलज्ञान प्रकाश लिया।। समवसरण में सब जीवों के, मिथ्यातम का नाश हुआ। हुई प्रफुल्लित धरती ही क्या, प्रमुदित सब आकाश हुआ।।4।। ऊँ ही फाल्गुनकृष्णएकादश्यां केवलज्ञानप्राप्ताय श्री आदिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा। माघ कृष्ण चौदस के दिन, कैलाश गिरि ने यश पाया। आठों कर्म विनाशे प्रभु ने, अष्टम वसुधा को पाया।। तीर्थकर से परिणय करके, मुक्तिरमा भी धन्य हुई। जय-जय आदीश्वर नारों की, पावन धरा अनन्य हुई।।5।। ॐ हीं माघकृष्णचतुर्दश्यां मोक्षमंगलमंडिताय श्री आदिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।

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