Book Title: Jainology Parichaya 03
Author(s): Nalini Joshi
Publisher: Sanmati Tirth Prakashan Pune

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Page 11
________________ (७) त्रसजीव के चार भेद - १) द्वीन्द्रिय जीव, उदा. शंख, लट, जौंक आदि । २) त्रीन्द्रिय जीव, उदा. चींटी, मकोडा, खटमल आदि । ३) चतुरेन्द्रिय जीव, उदा. मक्खी, मच्छर, बिच्छू आदि । ४) पंचेन्द्रिय जीव, उदा. मनुष्य, पशु-पक्षी आदि । (८) पंचेन्द्रिय जीव के दो भेद - १) संज्ञी - मनसहित जीव, गर्भस्थ पंचेन्द्रिय २) असंज्ञी - मनरहित जीव, एकेन्द्रिय से चतुरेन्द्रिय (९) इन्द्रियों के पाँच भेद - १) स्पर्शनेन्द्रिय २) रसनेन्द्रिय ३) घ्राणेन्द्रिय ४) चक्षुरिन्द्रिय ५) श्रोत्रेन्द्रिय (१०) ज्ञान के पाँच भेद - १) मतिज्ञान (इन्द्रिय ज्ञान) २) श्रुतज्ञान ३) अवधिज्ञान ४) मन:पर्यायज्ञान ५) केवलज्ञान (११) अजीव के पाँच भेद - १) धर्म २) अधर्म ३) आकाश ४) काल ५) पुद्गल (परमाणु) (१२) आकाश के दो भेद - १) लोकाकाश २) अलोकाकाश (१३) कालचक्र के मुख्य दो भेद - १) अवसर्पिणी काल २) उत्सर्पिणी काल (१४) अवसर्पिणी – उत्सर्पिणी काल के छह आरे - १) सुषमा-सुषमा ४) दुषमा-सुषमा २) सुषमा ५) दुषमा ३) सुषमा-दुषमा ६) दुषमा-दुषमा (१५) पुद्गल (परमाणु) के चार गुण - १) स्पर्श (touch) ३) गन्ध (smell) २) रस (taste) ४) वर्ण (रंग color)

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