Book Title: Jainology Parichaya 03
Author(s): Nalini Joshi
Publisher: Sanmati Tirth Prakashan Pune

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Page 27
________________ जो क्रिया हम हमेशा करते हैं, उनके लिए भी वर्तमानकाल का प्रयोग होता है । जैसे कि - 'अहं पइदिण भुंजामि ।' इसका अर्थ हिंदी में हम इस प्रकार लिखेंगे - 'मैं प्रतिदिन भोजन करता हूँ।' कालिक सत्य विधानों के लिए भी हम वर्तमानकाल का उपयोग करते हैं । जैसे कि- 'मणुस्सा मरणसीला हवंति ।' (मनुष्य मरणशील होते हैं ।) 'सियालो धुत्तो होइ ।' (सियार धूर्त होता है ।) वर्तमानकाल के प्रत्यय पुरुष एकवचन अनेकवचन प्रथम पुरुष द्वितीय पुरुष तृतीय पुरुष अंति सर्वनामसहित वर्तमानकाल के क्रियारूप धातु (क्रियापद) : पुच्छ (पूछना) पुरुष प्रथम पुरुष द्वितीय पुरुष तृतीय पुरुष एकवचन (अहं) पुच्छामि । (तुम) पुच्छसि । (सो) पुच्छइ । अनेकवचन (अम्हे, वयं) पुच्छामो । (तुम्हे) पुच्छह । (ते) पुच्छंति । निम्नलिखित क्रियापद ‘पृच्छ (पूछना)' क्रियापद के समान उपयोजित किये जाते हैं - पास (देखना), गच्छ (जाना), आगच्छ (आना), खण (खनना), खिव (फेंकना), गेण्ह (ग्रहण करना), चिट्ठ (खडे होना), जाण (जानना), धाव (दौडना), पढ (पढना), फुस (स्पर्श करना), भास (बोलना), भण (बोलना), वस (रहना), हण (मारना, हनन करना), वंद (वंदन करना) प्रश्न : निम्नलिखित प्राकृत वाक्यों के क्रियापद, पुरुष और वचन पहचानिए । १) समणो जिणदेवं वंदइ। श्रमण जिनदेव को वंदन करता है । उदा. क्रियापद वंद' - तृतीय पुरुष, एकवचन । २) तुम्हे कूवं खणह । तुम सब कुआँ खन रहे हो । ३) आसो वेगेण धावइ । अश्व वेग से दौडता है।

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