Book Title: Jainology Parichaya 03
Author(s): Nalini Joshi
Publisher: Sanmati Tirth Prakashan Pune

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Page 26
________________ २) वणाणं सोहा पेक्खिउं सीया तत्थ गया । वनों की शोभा देखने के लिए सीता वहाँ गयी । (६) सप्तमी विभक्ति : (Locative ) अधिकरणकारक १) व सीहा गज्जति । वन में सिंह गर्जना करते हैं । २) मिगा वणेसु रमंति । मृग वनों में रमते हैं । (७) संबोधन विभक्ति : ( Vocative) निमंत्रण, संबोधन १) पुप्फ ! तुमं जणाणं आणंद देसि । हे पुष्प ! तुम लोगों को आनंद देते हो । २) पण्णाई ! सव्वाणं सीयलं छायं अप्पेह । हे पर्णों ! सबको शीतल छाया प्रदान करो । (ब) क्रियापद के प्रत्यय (Verb - declesion) भाषा में वाक्य बनने के लिए दूसरा महत्त्वपूर्ण घटक है 'क्रियापद' । १) वाक्य में क्रियापद प्रयुक्त करने के लिए प्रथमत: 'काल' देखना पडता है । प्राकृत में तीन मुख्य काल हैं वर्तमानकाल (present tense), भूतकाल (past tense) और भविष्यकाल (future tense) । इसके अतिरिक्त 'आज्ञार्थ' और ‘विध्यर्थ’ भी होते 1 २) क्रिया के रूप प्रयोग करते हुए एकवचन (singular) या अनेकवचन (plural) का उपयोग करना पडता है । ३) क्रिया के रूप हमेशा प्रथमपुरुष (first Person), द्वितीय पुरुष (second Person), या तृतीय पुरुष (third Person) में प्रयुक्त होते हैं । इस पाठ में हम वर्तमानकाल, भूतकाल, भविष्यकाल, आज्ञार्थ और विद्यर्थ के प्रत्यय, क्रियापद त वाक्य दे रहे हैं । वाक्य पढते समय क्रिया, वचन तथा पुरुष का विशेष ध्यान रखें । वर्तमानकाल : (Present Tense) जो क्रिया हम अभी कर रहे हैं, उसके लिए वर्तमानकाल का प्रयोग होता है । जैसे कि - 'बालगा महावीरं वंदंति ।' इसका अर्थ हिंदी में हम इस प्रकार लिखेंगे - 'बालक महावीर को वंदन करते हैं ।'

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