Book Title: Jainendra Siddhanta kosha Part 3
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Bharatiya Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 21
________________ परमाणु शस्त्रसे भी छेदा या भेदा नहीं जा सकता, तथा जल और अग्नि आदिके द्वारा नाशको प्राप्त नहीं होता, वह परमाणु है ॥६६॥ स.सि./.पू. प्रदिश्यन्त इति प्रवेशा परमाणवः (२/१८/९१२/६) प्रदेशमाभावस्पर्शादिसामर्थ्येनाण्यन्ते राज्यन्त इत्यणमः । (२/२३/२१०/३ ) - प्रदेश शब्द की व्युत्पति प्रदिश्यन्ते' होती है। इसका अर्थ परमाणु है । (२/३८) एक प्रदेशमें होनेवाले स्पर्शाद पर्यायको उत्पन्न करने की सामर्थ्य से जो 'अभ्यन्ते' अर्थाद कहे जाते हैं वे अणु कहलाते है। (मा./५/२३/२/४१२/१२) ज.प./११/१० जस्स न कोई अणुदरो सो अओ होदि सम्यदव्यानं जावे पर अणुत्त तं परमाणू मुणेयव्त्रा । १७ । - सब द्रव्योमें जिसकी अपेक्षा अन्य कोई अणुत्तर न हो वह अणु होता है। जिसमें अत्यन्त अणुत्व हो उसे सब द्रव्योमे परमाणु जानना चाहिए ११७१ २. क्षेत्रका प्रमाण विशेष = ज. प./१३/२१ अट्ठहि तेहि या सण्णासण्णहि तह य दव्वेहि । महारियपरमाणु गिट्ठिो सम्यदरिसीहि |११| आठ सन्नासन्न इसे एक व्यावहारिक परमाणु (त्रुटिरेगू होता है। ऐसा सर्व दर्शियोने कहा है (विशेष दे० गणित /I/१/३) ३. परमाणुके भेद न च वृ / १०१ कारणरूवाणु कज्जरूवो वा । ११०१| परमाणु दो प्रकारका होता है -- कारण रूप और कार्यरूप । (नि. सा./ता.वृ./२५) प्र. सा./ता.वृ./८०/९३६/१८) । नि. सा./ता.वृ/२५ अणवश्चतुर्भेदा कार्यकारणजघन्यो । - अधुओं के (परमाणुओके) चार भेद हैं। कार्य. कारण, जवण्य और उत्कृष्ट | पं.का./ता.वृ./१२/२२/१६ द्रव्यपरमाणु भावपरमाणुं परमाणु दो प्रकारका होता है- द्रव्य परमाणु और भाव परमाणु । ४. कारण कार्य परमाणुका लक्षण नि सा./मू./२५ घाउचउक्कस्स पुणो जं हेऊ कारणंति तं णेयो। धाणं अवसानो गायो कपरमाणू २१ फिर जो पृथ्वी, तेज और वायु इन चार धातुओंका हेतु है, वह कारण परमाणु जानना, स्कन्धों के अवसानको (पृथक हुए अभिभागी अन्तिम दशको कार्य परमाणु जानना |२५| • पं. का/ता.वृ./८०/११६/१७ मोसी कन्यानां भेदको अजित स कार्य परमारुच्यते यस्तु कारकरतेषां स कारणपरमाणुरिति धोके = स्कन्धो भेदको करनेवाला परमाणु तो कार्य परमाणु है और स्वाधोका निर्माण करनेवाला कारण परमाणु है। अर्थात स्कन्धके विघटनसे उत्पन्न होनेवाला कार्य परमाणु और जिन परमाणुओ के मिलने कोई क बने वे कारण परमाणु है । ५. जघन्य व उत्कृष्ट परमाणुके लक्षण नि. साता २५ यम्यपरमाणुः स्निग्वरूक्षगुणानामानन्याभावात् रामवियमन्ययोरयोग्य इत्यर्थः स्निग्धरूक्षगुणानामनन्यतरस्योपरि चतुर्भिसंबन्ध त्रिभिः पचभिर्विषयमन्ध अधमुरकृष्टपरमाणु, । वही ( कारण परमाणु ), एक गुण स्निग्धता या रूक्षता होनेसे सम या विषम बन्धको अयोग्य ऐसा जघन्य परमाणु है - ऐसा अर्थ है। एक गुण स्निग्धता या रूक्षताके ऊपर दो गुणबाने और चार गुणवाका समय होता है, तथा तीन गुणालेका और पाँच गुणवाका विषम अन्य होता है- यह उत्कृष्ट परमाणु है। Jain Education International १४ १. परमाणुके भेद व लक्षण 201 ६. द्रव्य व भाव परमाणुका लक्षण पं./१२/२११/२० इव्यपरमाणुशब्देन द्रव्यसूक्ष्मत्वं प्रा भावपरमाणुशब्देन च भावसूक्ष्मत्वं न च पुद्गलपरमाणु द्रव्यशब्देनान्यं प्राय तस्य तु परमाणु परमाणुरिति कोऽयं । रागाद्य ुपाधिरहिता सूक्ष्मावस्था । तस्या सूक्ष्मत्व कथमिति चेत् । समाधिविषयादिति द्रव्यपरमाणुशब्दस्य व्याख्यानं । भावशब्देन तु तस्यैवात्मद्रव्यस्य स्वसंवेदनज्ञानपरिणामो ग्राह्य तस्य भावस्य परमाणु' । परमागुरिति कोऽर्थ । रागादिविकल्परहिता सूक्ष्मावस्था । तस्था. सूक्ष्मत्व कथमिति चेत् । इन्द्रियमनोविकल्पाविषयादिति भावपरमाणुशन्दस्य व्याख्यानं ज्ञातव्यं । द्रव्यपरमायु द्रव्यकी सूक्ष्मता और भाव परमाणुले भावकी सूक्ष्मता कही गयी है। उसमें पुद्गल परमाणुका कथन नहीं है। द्रव्य शब्दसे आत्म द्रव्य ग्रहण करना चाहिए। उसका परमाणु अर्थात् रागादि उपाधिसे रहित उसकी सूक्ष्मावस्था, क्योंकि वह निर्विकल्प समाधिका विषय है। इस प्रकार द्रव्य परमाणु कहा गया। भाव शब्दसे उसही आत्म द्रव्यका स्वसंवेदन परिणाम ग्रहण करना चाहिए। उसके भावका परमाणु अर्थात रागादि विकल्प रहित सूक्ष्मावस्था, क्योकि वह इन्द्रिय और मनके विकल्पोंका विषय नही है। इस प्रकार भावपरमाणु शब्दका व्याख्यान जानना चाहिए। (१. प्र./टी./२/३३/१५३/२) । रा. या हि १/२७/०३२ भाग परमाणु क्षेत्रकी अपेक्षा तो एक प्रदेश है। व्यवहार कालका एक समय है । और भाव अपेक्षा एक अविभागी प्रतिच्छेद है। वहाँ पूगलके गुण अपेक्षा तो स्पर्श, रस, गन्ध, म के परिणमनका अंश लीजिए। जीवके गुण अपेक्षा ज्ञानका तथा कषायका अंश लीजिए। ऐसे द्रव्य परमाणु ( पुद्गल परमाणु ) भाव परमाणु ( किसी भी द्रव्य गुणका एक अविभागी प्रतिच्छेद) यथा सम्भव समझना । ७. परमाणुके अस्तित्व सम्बन्धी शंका समाधान रा. वा. अप्रदेशत्वादभव (परमाणु) खरविषाणयदिति चेदन उपर 121 प्रदेशमात्रोऽणुन सरवदे इति रा. वा५/२६४-१६४२/२३ कथं पुनस्तेषामशूनामत्यन्तपरोक्षाणाद अस्तित्वसीयत इति चेत् उच्यते तदस्ति कार्याद ||१| नास परमाणुषु शरीरेन्द्रियमहाभूतादिलक्षणस्य फार्मस्य प्रादुर्भाव इति । प्रश्न- अप्रदेशी होनेसे परमाणुका खरविषाणकी तरह अभाव है। उत्तर--नहीं, क्योकि पहले कहा जा चुका है कि परमाणु एक प्रदेशी हैन कि सर्वथा प्रदेश शून्य । प्रश्न - अत्यन्त परोक्ष उन परमाणुओंके अस्तित्वकी सिद्धि कैसे होती है। उत्तरकार्यfare कारणका अनुमान किया जाना सर्व सम्मत है। शरीर, इन्द्रिय और महाभूत आदि स्कन्ध रूप कार्योंसे परमाणुओंका अस्तित्व सिद्ध होता है। क्योकि परमाणुओंके अभाव में स्कन्ध रूप कार्य नहीं हो सकते। घ. १४/५,६,७६/२७/२ परमापूर्णा परमाणुभावेण सक्ष्यकालमवणाभावादो भाव दे ण पोरगलभावेन उप्पादविणासन ज्जिएग परमाणूर्ण पिदव्वत्तसिद्धीदो। =! प्रश्न- परमाणु सदाकाल परमाणु रूपसे अबस्थित नहीं रहते इसलिए उनमें द्रव्यपना नहीं बनता उत्तर- नहीं, क्योकि परमाणुओका पुद्गल रूपसे उत्पाद और विनाश नहीं होता इसलिए उनमें द्रव्यपना भी सिद्ध होता है । जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश For Private & Personal Use Only ८. आदि मध्य अन्तहीन भी उसका अस्तित्व है रावा./२/११/५/४६४/६ आदिमध्यान्तव्यपदेश परमाणोः स्वाद्वा न वा यचस्तिः प्रदेशवरवं प्राप्नोति अथ नास्ति खरविषाणयदस्याभावः स्यादिति तन्न कि कारण विज्ञानवत्। यथा विज्ञानमादिमध्यान्तव्यपदेशाभावेऽप्यस्ति तथाणुरपि इति । उत्तरत्र च तस्या www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 ... 639