Book Title: Jainendra Mahavrutti
Author(s): Devnandi Maharaj, Abhaynandi  Maharaj, Shambhunath Tripathi, Mahadev Chaturvedi
Publisher: Bharatiya Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 552
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४६२ घटैष् व्यथैष् प्रथैष् प्रसैष् मुदै स्खदैष ञित्वरा क्रदैघू क्लदैषु ऋदिङ् चजिङ् दक्षै कृपै ज्वर गड वट भट नट ष्टक चक कखे रगे लगे गे ष टगे क श्रग करण रण चण वण श्रण } चेष्टायाम् चलभीत्योः प्रख्यातौ विस्तारे मदे खनने संभ्रमे वैक्लव्ये गतिदानयोः गतिहिंसायाम् कृपायाम् जैदितोऽमी रोगे सेचने वेष्टने परिभाषणे नृत्तौ लोटने तृप्तौ च हसने शंकने संजने संवरणे कुटिलायां गतौ गतौ दाने मथ क्नथ क्रथ क्लथ चण हल हाल ज्वल स्मृ श्रा चलि छदिर् लडि मदी स्वनिर् ध्वन फल ज्वल चल ཨྠ ཤྲཱ ཝཾ ལྕ ླ མི་ལ་ स्यभु स्वन राजुङ् दुम्राश टुभ्लाशृङ् भ्राजै जल टल जैनेन्द्र-व्याकरणम् टूवल बुल हल www.kobatirth.org चल पुल कुल हिंसायाम् चलने दीती श्राध्याने भये नये पाके कम्पने ऊर्जने जिह्वोन्मथने हर्षग्पलेनयोः अवतंसने शब्दे गतौ वृत् घटादिः } शब्दे दोसौ वृत् पुणादिः दोस कम्पने धान्ये वैक्लव्ये स्थाने विलेखने महत्त्व संस्त्यान संतानयोः For Private And Personal Use Only फल Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ཝེ ཟླ ཨཱ སྠཽ ཀླྀ शल पेत्लृ हुल कथे टुवमु क्षर wha प रमुङ् शल पल क्रुशौ कुच रुहौ कस भू बुधञ् अत चिती कितौ कृत मंथ प्राणधान्यावरोधयोः विधू षिधु ज्यु तर् च्युतिर् श्च्युतिर् स्रुतिर् कुथि पुथि लुथि मथि खाद् गमने हिंसा संवरणयोश्च निष्पचने उद्गरणे संचलने मर्पणे क्रीडायाम् शातने गतिविशरण योश्च रोदनाह्वानयोः संवर्चन कौटिल्य प्रतिस्तंभविलेखनेषु जनने गमने भुवि बोधने वृत् ज्वलादिः सातत्यगमने संज्ञाने निवासे गतिघृणास्पर्धेषु विभासे क्षरणे हिंसासंक्लेशयोः शास्त्रमाङ्गल्ययोः तौ भक्षणे

Loading...

Page Navigation
1 ... 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568