Book Title: Jainendra Mahavrutti
Author(s): Devnandi Maharaj, Abhaynandi  Maharaj, Shambhunath Tripathi, Mahadev Chaturvedi
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 555
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जैनेन्द्रधुपाठः ४१५ शूल तूल भ्रण हिंसायाम् रुजायाम् निष्कर्ष संधाते प्रतिष्ठायाम् निध्यत्तौ विकसने भावकरणे शैथिल्ये त्रुप # # % ཟླ ཟླ # # ཡྻ – # % @ स्तन वन मूल फल फुल्ल चुल्ल चिल्ल वेल्ल ) त्रुफ @फ षिभु किंभु ) EEEEEEEEEEEFLETIT षण ) संभक्तो वेलू प्रोण शुंभ भाषणेच यभी खेल चलने मैथुने क्नेल. जभ अपनयने शोण वर्णगत्योः श्रोण संघाते श्लोण । गीतप्रेरणश्लेषणेषु कनी दीप्तिकांतिगतिषु अम गीतभक्तिशब्देषु णमो प्रहन्वे क्रम पादविक्षेपे पैण वेल रफि स्खल स्वल गल । संवये चर्व अदने श्वल । आशुगमने खर्च बंधने गतो मन्य सन्य श्वल्ल खोल धोई त्सर क्मर पेलू गतिप्रतिघाते गतिचातुर्ये छद्मगती इक्ष्य ईर्ष्यार्थाः सूर्य हय । गमलू गतिक्लांत्योः शेत शल वक्त्रसंयोगे चल्ल चुचि अण रण तिल्ल व्यभ्र गतो मभ्र वण मण चुच्यी अभिषवे अल भूषणपर्याप्तवारणे दल ञिफल । विशरणे मील निमेषणे क्ष्मील पील प्रतिष्टंभे नील वर्णे समाधौ. श्रावरणे स्मील शब्दे अभ्र कण शिवि बण भण शील रवि भ्रण धवि For Private And Personal Use Only

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