Book Title: Jainendra Mahavrutti
Author(s): Devnandi Maharaj, Abhaynandi Maharaj, Shambhunath Tripathi, Mahadev Chaturvedi
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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जैनेन्द्रधुपाठः
४१५
शूल तूल
भ्रण
हिंसायाम्
रुजायाम् निष्कर्ष संधाते प्रतिष्ठायाम् निध्यत्तौ विकसने भावकरणे शैथिल्ये
त्रुप
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स्तन वन
मूल फल फुल्ल चुल्ल चिल्ल वेल्ल )
त्रुफ
@फ षिभु किंभु )
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षण )
संभक्तो
वेलू
प्रोण
शुंभ
भाषणेच
यभी
खेल
चलने
मैथुने
क्नेल.
जभ
अपनयने शोण वर्णगत्योः श्रोण
संघाते श्लोण ।
गीतप्रेरणश्लेषणेषु कनी दीप्तिकांतिगतिषु अम गीतभक्तिशब्देषु णमो प्रहन्वे क्रम पादविक्षेपे
पैण
वेल
रफि
स्खल स्वल गल ।
संवये
चर्व
अदने
श्वल ।
आशुगमने
खर्च
बंधने
गतो
मन्य
सन्य
श्वल्ल खोल धोई त्सर क्मर पेलू
गतिप्रतिघाते गतिचातुर्ये छद्मगती
इक्ष्य
ईर्ष्यार्थाः
सूर्य
हय ।
गमलू
गतिक्लांत्योः
शेत
शल
वक्त्रसंयोगे
चल्ल
चुचि अण रण
तिल्ल
व्यभ्र
गतो
मभ्र
वण मण
चुच्यी
अभिषवे अल
भूषणपर्याप्तवारणे दल ञिफल ।
विशरणे मील
निमेषणे क्ष्मील पील प्रतिष्टंभे नील वर्णे
समाधौ. श्रावरणे
स्मील
शब्दे
अभ्र
कण
शिवि
बण भण
शील
रवि
भ्रण
धवि
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