Book Title: Jainendra Mahavrutti
Author(s): Devnandi Maharaj, Abhaynandi Maharaj, Shambhunath Tripathi, Mahadev Chaturvedi
Publisher: Bharatiya Gyanpith
View full book text ________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
५०४
मुद
त्रस
मुच
पुष
दल
पट
संसर्गे
वारणे
प्रमोचने
आस्वदः सकर्मकात् )
पुट
लुट
लुजि
तुजि
पिजि
भजि
पिसि
कुसि
दसि
लसि
ལླཱ ཤྲཱ ཡྻ ཝཿ ལྦ པླ ཝཱ ཝཱ ཤཱ 1 , ལ ཡཱཾ ཤྲཱ ཝཱ བྷ ཝཱ, ཟླ ྂ
कुशि
विच्छ
लोक
लोचृ
त्रुप
धारणे
विदारणे
भाषार्थाः
आप्यायने
संवरणे
जैनेन्द्र-व्याकरणम्
श्रवमोचने
प्रस्रवणे
पारुष्ये
www.kobatirth.org
सूत्र
मूत्र
रूक्ष
बष्क
कच्छ
चित्र
अंस
मिश्र
छिद्र
अंध
दंड
अंक
अंग
प
वर्ण
कथ
वर
गण
शठ
श्वठ
पट
वट
मृष
रह स्तन
सर
कृप
♦
श्रथ
दर्शने
शैथिल्ये
चित्रकरणे
कदाचिद्दर्शने च
}
समाघाते
संपर्चने
कर्णभेदे
दृष्ट्युपसंहारे
दण्डनिपाते
लक्षणे
पदलक्षणे च
हरितभावे
वर्णक्रियाविस्तार
गुणवचनेषु
वदने
म्
संख्याने
सम्यगव भाषणे
पत
पत्र ( अगिः )
स्वर
रच
कल
चह
मह
ग्रंथे
तितिक्षायाम् त्यागे
देवशब्दे
गतौ वा
"
आक्षेपे
प्रतियत्ने गतौ
परिकल्कने
पूजायाम्
शैथिल्ये
For Private And Personal Use Only
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
स्पृह
भाम
सूच
खेट
खोट
गोम
कुमार
शील
साम
वेल
पल्यूल
वास
गवेष
वास
निवास
भाज
सभाज
ऊन
粥 鞀 丽 觋舸卵鹂 啾永丽丽丽西丽 丽家丽
कूट
केत
ग्राम
कुण
स्तेन
वत्रि
लजि
पार
तीर
सुख
स्तोम
दुःख
रस
व्यय
रूप
छेद
}
लाभ
व्रण
सम्
क्रोधे
पैशुन्ये
भक्षणे
क्षेपे
उपक्षेपे
क्रीडने
उपधारणे
सां
कालोपदेशे
लवनपवनयोः
गतिसुख सेवन योः
मार्गणे
उपसेवायाम्,
आच्छादने
पृथक्करणे
प्रीतिदर्शनयोः
परिहाने
दा
आमंत्रणे
चौर्य
विभाजने
प्रकाशने
} कर्मसमातौ
श्लाघायाम्
तत्क्रियायाम्
आस्वादस्नेहयोः
वित्तसमुत्सर्गे
रूपक्रियायाम्
द्वैधीकरणे
प्रेरणे
गात्रविचूर्णने एते मवंतः
Loading... Page Navigation 1 ... 562 563 564 565 566 567 568