Book Title: Jain Yug 1983
Author(s): Mohanlal Dalichand Desai
Publisher: Jain Shwetambar Conference

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Page 545
________________ ४३ પ્રાકૃત-પાઠાવલી ण हु जिणे अज्ज दीसइ बहुमए दीसइ मग्गदेसिए। संपइ नेआउए पहे . समयं० . तिण्णो हु सि अण्णवं महं किं पुण चिट्ठसि तीरमागओ। अभितुर पारं गमित्तए समयं० बुद्धस्स निसम्म भासियं सुकहियमद्यपदोवसोहियं । रागं दोसं च छिंदिया सिद्धिगई गए गोयमे ॥ -उत्तरज्झयणाई. एगवीसहमो पाढो हरिकेसी सोवागो सोवागकुलसंभूओ गुणुत्तरधरो मुणी । हरिएसबलो नाम आसि भिक्खू जिइंदिओ ॥ मणगुत्तो वयगुत्तो कायगुत्तो जिइंदिओ। भिक्खट्टा वंभइज्जम्मि जन्नवाडमुवडिओ॥ तं पासिऊणमिजंतं तवेण परिसोसियं । पंतोवहिउवगरणं उवहसंति अणारिया ॥ जाइमयं पडिथद्धा हिंसगा अजिइंदिआ । अबंभचारिणो बाला इणं वयणमब्बवी ।। बंभणा-कयरे आगच्छइ दित्तरूवे काले विकराले फुक्कनासे । ओमचेलए पंसुविसायभूए संकरसं परिहरिय कंठे ॥ कयरे तुमं इय अदंसणिज्जे काए व आसा इहमागओ सि । ओमचेलगा ! पंसुपिसायभूआ ! गच्छ क्खलाहि किमिहं ठिओ सि ॥ समणो-समणो अहं संजउ बंभयारी विरओ धण-पयण-परिग्गहाओ। परप्पवित्तस्स उ भिक्खकाले अन्नस्स अट्ठा इहमागओ सि ॥ वियरिज्जइ खजइ भुजइ य अन्नं पभूयं भवयाणमेयं । जाणाह मे जायणजीविणु त्ति सेसावसेसं लहओ तवस्सी ॥ बंभणा--उवक्खडं भोयण माहणाणं अत्तहियं सिद्धमिहेगपक्खं । नऊ वयं एरिसमन्नपाणं दाहामु तुझं किमिदं ठिओ सि ? ॥ समणो--तुभित्थ भो ! भारहरा गिराणं अटुं न याणह अहिज्ज वेए । उच्चावयाई मुणिणो चरंति ताई तु खित्ताई सुपेसलाई ॥ बंभणा--अज्झावयाणं पडिकूलभासी पभाससे किंनु सगासि अम्हं । __अवि एवं विणस्सउ अन्न-पाणं न य णं दाहामु तुमं नियंठा !॥ समणो--जइ मे न दाहित्य अहेसणिज्ज, किमज्ज जन्नाण लभित्थ लाभं ॥

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