Book Title: Jain Yug 1983
Author(s): Mohanlal Dalichand Desai
Publisher: Jain Shwetambar Conference

View full book text
Previous | Next

Page 548
________________ જેનયુગ ભાદ્રપદ-આશ્વિન ૧૯૮૩ विवरीयं चिय रइयं तारण अदीहपेहिणा ॥ १०६ रामस्स को गुणाणं अंतं पावेइ धीरगरुयस्स । लोभेण जस्स रहियं चित्तं चिय मुणिवरस्सेव ॥ १०७ अहवा रजधुरंधर सव्वं फेडेमि अज्ज भरहस्स । ठावेमि कुलाणीए पुहइवई आसणे रामं ॥ १०८ एएण किं व मज्ज्ञं हवइ वियारेण ववसिएणज्ज । नवरं पुण तच्चत्थं ताओ जेट्टो य जाणंति ॥ १०९ कोवं च उवसमेऊ, पणमिय पियरं परेण विणएणं । आपुच्छइ दढचित्तो सोमित्ती अत्तणो जणणी ॥ ११० संभासिऊण भच्चे, वज्जावत्तं च धणुवरं घेत्तु । घणपीइसंपउत्तो पउमसयासं समल्लीणो ॥ १११ पियरेण बंधवेहि य सामंतसएसु परिनिग्ग संता। रायभवणाओ एत्तो विणिग्गया सुरकुमार व्व ॥ ११२ सुयसोगतावियाओ धरणियलोसित्तअंसुनिवहाओ। कह कह वि पणमिऊणं नियत्तियाओ य जणणीओ ॥ ११३ काऊण सिरपणामं नियत्तिओ दसरहो य रामेणं । सह वडिया य बंधू कलुणपलावं च कुणमाणा ॥ ११४ जपंति एक्कमेकं एस पुरी जइ वि जणवयाइण्णा । जाया रामविओए दीसइ विंझाडवी चेव ।। ११५ -पउमचरियं. चऊवीसो पाढो कविणो दोग्गचम्मि वि सोक्खाई ताण विहवे वि होंति दुक्खाई । कव्वपरमत्थरसियाई जाण जायंति हिययाई ॥ ६४ ठियमट्ठियं व दीसइ अट्ठियं पि परिट्ठियं व पडिहाइ । जहसंठियं च दीसइ सुकईण इमाओ पयईओ ॥ ६६ सजणा-जाण असमे हि विहिया जायइ जिंदा समा सलाहा वि । जिंदा वि तेहि विहिया ग ताण मण्णे किलामेइ ॥ ७३

Loading...

Page Navigation
1 ... 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576