Book Title: Jain Siddhant Pravesh Ratnamala 01
Author(s): Digambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
Publisher: Digambar Jain Mumukshu Mandal

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Page 186
________________ ( 178 ) और केवलज्ञान का भविष्य के केवलज्ञान में प्रभाव प्रध्वंसाभाव है। (4) दही का दूध में अभाव सो प्रागभाव है और दही का मट्ठ की पर्याय में प्रभाव प्रध्वंसाभाव है। (5) रोटी का लोई में प्रभाव पागभाव है और रोटी का उल्टी में प्रभाव सो प्रध्वंसाभाव है। (6) सिद्ध दशा का संसार दशा में प्रभाव सो प्रागभाव है और सिद्ध दशा का भविष्य की सिद्ध दशा में प्रभाव सो प्रध्वंसाभाव है। (7) 'शब्द हुना' का पूर्व को पर्याय में प्रागभाव है और शब्द का भविष्य की पर्याय में प्रभाव सो प्रध्वंसाभाव है। (8) प्रोपरामिक सम्यक्त्व का मिथ्यात्व में प्रभाव प्रागभाव है और प्रौपरामिक सम्यक्त्व का क्षायोपशमिक सम्यक्त्व में प्रभाव प्रध्वंसाभाव है। (8) ज्ञानावर्गी कर्म के क्षयोपशम का ज्ञान वर्गी के उदय में अभाव सो प्रागभाव है और ज्ञानावर्णी कर्म के क्षयोपशम का ज्ञानावर्णी के अभाव में प्रध्वंसाभाव है। (10) दर्शन मोहनीय के उपशम का दर्शन मोहनीय के उदय में प्रभाव सो प्रागभाव है और दर्शन मोहनीय के उपशम का दर्शनमोहनीय के क्षयोपशम में प्रध्वंसाभाव है। (11) रसगुल्ला को पूर्व पर्याय में प्रभाव सो प्रागभाव है और रसगुल्ले का भविष्य की उल्टो पर्याय में प्रभाव प्रध्वनाभाव है। (12) अपूर्वकरण का अधःकरण में प्रभाव प्रागभाव है / और अपूर्वकरण का अनिवृत्तिकरण में प्रभाव प्रध्वंसाभाव है।

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