Book Title: Jain Siddhant Pravesh Ratnamala 01
Author(s): Digambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
Publisher: Digambar Jain Mumukshu Mandal

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Page 193
________________ ( 185 ) अत्यन्ताभाव अन्योन्याभाव को नहीं माना और घड़ा बना उसमें पहली पिछली पर्याय भी कुछ करती हैं ऐसी मान्यता वाले ने प्रागभाव प्रध्वंसाभाव को नहीं माना। पड़ा उस समय की योग्यता से ही बना है उसमें कुम्हार का इन्डा चाक प्रादि का तथा पिण्ड का या भविष्य को पर्यायों का संबंध नहीं है। ऐसा माना तो चारो प्रभाव को माना / इसी प्रकार 13 वाक्यों का उत्तर दो। प्र० 35. अन्योन्याभाव की क्या आवश्यकता थी ? उ० जैसे सुनार ने जेवर बनाया तो सुनार जेवर का तो अत्यन्ताभाव हो गया। इसके बदले कोई कहे सुनार ने तो नहीं बनाया परन्तु हाथ हथौड़ा आदि से तो बना तो उससे कहते हैं कि भाई पुद्गलों की वर्तमान पर्यायों में प्रभाव है ऐसा अन्योन्याभाव बताता / जब पुद्गल की पर्याय दूसरे पुद्गल की पर्याय में कुछ नहीं कर सकती है तो तू तो विजातीय है / यह बताने के लिए अन्योन्याभाव को बताने को आवश्यकता थी। प्र० 36. जीव दूसरे का तो न करे परन्तु पुद्गल तो पुद्गल का करता है ना? उ० अन्यान्योभाव को नहीं माना / प्र. 37. जीव से तो भाषा नहीं निकली परन्तु होंठ से तो निकली है ना? उ. अन्योन्याभाव को नहीं माना /

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