Book Title: Jain Siddhant Pravesh Ratnamala 01
Author(s): Digambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
Publisher: Digambar Jain Mumukshu Mandal

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Page 218
________________ जय महावीर, जय गुरुदेव आत्म स्वरूप को भुलाने वाले सप्त व्यसन क्या है ? जुना प्रामिष मदिरा दारी, आखेटक चोरी परनारी। एही सात व्यसन दुखदाई, दुरित मूल दुर्गति के भाई। दवित ये सातों व्यसन; दुराचार दुखधाम / भावित अन्तर - कल्पना, मृषा मोह परिणाम / अशुभ में हार शुभ में जीत यही है छ त कर्म / देह की मगनताई, यहै मांस भखिबो। मोह की गहल सों अनान यहै सुरापान / कुमति की रीति गणिका को रस चखिबो। निर्दय ह प्राण घात करबो यह शिकार / पर - नारी संग पर - बुद्धि को परखिबो। प्यार सों पराई सौंज गहिबे की चाह चोरी / एई सातों व्यसन विडारी ब्रह्म लखिबो। -बनारसी दास 1. जुमा-शुभ में जीत तथा अशुभ में हार मानना भाव जुआ है /

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