Book Title: Jain Siddhant Pravesh Ratnamala 01
Author(s): Digambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
Publisher: Digambar Jain Mumukshu Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 219
________________ 2. मांस खाना-देह में मगन रहना प्रर्यात् शरीर के पुष्ट होने पर अपनी प्रात्मा का हित और शरीर के दुबले होने पर अपनी प्रात्मा का अहित मानना, भाव मांस खाना है। 3. मदिरापान-मोह में पड़कर प्रात्मस्वरूप से अनजान रहना, भाव मदिरापान है। 4. वेश्या गमन करना-खोटी बुद्धि में रमने का भाव अर्थात् अपनी आत्मा को छोड़कर विषय-कषाय में बुद्धि रखना ही भाव वेश्या रमरण है। 5. शिकार खेलना-तीव्र रागवश ऐसे कार्य करने के भावों द्वारा अपने चैतन्य प्राणों का घात करना, यह भाव रुप से शिकार खेलना है। 6. परस्त्री रमण-तत्त्व को समझने का यत्न ना करके दूसरों की बुद्धि की परख में ही ज्ञान का सदुपयोग मानना, भाव परस्त्री रमण है / 7. चोरी करना- मोहभाव से पर वस्तु को अपनी मानना ही भाव चोरी है। जिसे संसार के दु:खों से प्ररूचि हुई हो पौर प्रात्मस्वरूप प्राप्त कर सच्चा सुख प्राप्त करना हो उसे इन सप्त व्यसनों को त्याग कर देना चाहिए /

Loading...

Page Navigation
1 ... 217 218 219