Book Title: Jain Siddhant Pravesh Ratnamala 01
Author(s): Digambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
Publisher: Digambar Jain Mumukshu Mandal

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Page 205
________________ (197) प्र० 76. घड़ी की सुई कौन फेरता है ? उ० प्रपनी क्रियावतो शक्ति के कारण फिरती है। प्र. 80. घड़ी की सुई निश्चय काल है या व्यवहार काल ? उ० दोनों नहीं हैं क्योंकि घड़ी की सुई तो पुद्गलों का पिण्ड है / प्र० 81. दुःखी करने का भाव और सुखी करने का भाव क्या है और क्या नहीं है ? उ. दुःखी सुखी करने का भाव चारित्र गुण की विभावअर्थपर्याय है। स्वभावअर्थपर्याय नहीं है। प्र. 82. (1) प्रकाश हुप्रा (2) ममवान ने सिद्ध पद पाया (3) घी ताया (4) ठंड पड़ो (5) सम्यग्दर्शन प्रगटा उनमें उत्पाद व्यय ध्रौव्य लगानो। प्रधकार का व्यय, प्रकाश का उत्पाद वर्ण गुण कायम / इसी प्रकार बाकी के चार लगाओ। प्र. 83. (1) मिथ्यादर्शन (2) पुरुषाकार (3) मेघ गर्जना (4) परिणमन हेतुत्व (5) गति हेतुत्व (6) केवल ज्ञान (7) रुपया (8) शुभ भाव (9) गंध (10) श्रद्धा, यह क्या है ? उ० (1) मिथ्यादर्शन जीव द्रव्य के श्रद्धा गुण को विभावअर्थ पर्याय है। इसी प्रकार 6 का उत्तर दो। प्र. 84. सामान्य गुण पहिले या विशेष गुण ?

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