Book Title: Jain Siddhant Pravesh Ratnamala 01
Author(s): Digambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
Publisher: Digambar Jain Mumukshu Mandal

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Page 192
________________ ( 184 ) वर्तमान पर्याय को कहाँ ले जानोगे? पर, द्रव्यकर्म, पूर्व, भविष्य को पर्यायों से तो संबंध रहा ही नहीं। तो एक मात्र जो स्वभाव है उस पर दृष्टि देवें तो सम्यग्दर्शनादि की प्राप्ति होकर मोक्ष की प्राप्ति होती है। प्र० 34. (1) कुम्हार ने घड़ा बनाया (2) मैंने इच्छा की तो भाषा निकली (3) चश्मे से ज्ञान होता है (4) हमें शरीर और वस्त्रों की रक्षा करनी चाहिए (5) बाई ने चकला बेलन से रोटी बनाई (6) घाती कर्म के नाश से अरहंत दशा की प्राप्ति होती है. (7) प्रात्मा पर का कर सकता है ना ? (8) कर्म के उदय से रागादि उत्पन्न होते हैं (8) कर्म के उदय से औदयिक भाव होते हैं (10) मोहनीय उपशम से प्रोपरामिक भाव होते हैं (11) कर्म के क्षयोपशम से क्षायोपशमिक भाव होते हैं (12) कर्म के क्षय से क्षायिक भाव होते हैं (13) निमित से नैमित्तिक कार्य होता हैं (14) निमित्त से उपादान में कार्य होता है (15) इन सबमें जिस तरह से चारों अभाव लग सकते हैं लगायो / 1 तथा ऐसा माने तो, इस अभाव को नहीं माना। Il और ऐसे मानो, तो इस प्रभाव को माना इत्यादि बतायो। (1) कुम्हार ने घड़ा बनाया (1) कुम्हार का घडे में प्रभाव अत्यन्ताभाव है। (2) हाथ डन्डा कीली चाक डोरा घड़े का अन्योन्याभाव है (3) घड़े का पूर्व पिण्ड पर्याय में प्रागभाव है। (4) घड़े का भविष्य की ठीकरी में प्रभाव प्रध्वंसाभाव है। कुम्हार ने घड़ा डन्डा कीली से ही बनाया ऐसा मानने वाले ने उ०

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