Book Title: Jain Siddhant Pravesh Ratnamala 01
Author(s): Digambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
Publisher: Digambar Jain Mumukshu Mandal

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Page 190
________________ ( 182 ) रूप होने का प्रसंग उपस्थित होवे / / 50 27. प्रागभाव से धर्म संबन्धी क्या लाभ है ? उ० अनादि काल से जीव अज्ञान मिथ्यात्व और रागदि नये नये दोष करता पा रहा है; उसने धर्म कभी नहीं किया। लो भी वर्तमान में नये पुरुषार्थ से धर्म कर सकता है क्योंकि वर्तमान पर्याय का पूर्व पीय में अभाव वर्तता है। प्र० 28. प्रध्वंसाभाव से धर्म संबन्धी क्या लाभ है ? उ० वर्तमान अवस्था में धर्म नहीं किया है फिर भी जीव नवीन पुरुषार्थ से अधर्म दशा का तुरन्त ही प्रभाव करके अपने में सत्य धर्म प्रगट कर सकता है। कोई कहे मैंने तो वहत पाप किये हैं ग्रागे पाप का उदय या गया तो क्या होगा ? भगवान कहते हैं कि भाई वर्तमान पर्याय का भविष्य की पर्याय में प्रभाव है तू तुरन्त धर्म कर, देर मत कर / प्र. 29. अन्योन्याभाव से धर्म संबंधी क्या लाभ है ? उ० एक पुद्गल की वर्तमान पर्याय दूसरे पुद्गल द्रव्य की वर्तमान पर्याय का कुछ नहीं कर सकती है / जब पुद्गल की अवस्था सजाति में कुछ नहीं कर सकती है तो पुद्गल जीव का कुछ भी लाभ हानि कैसे कर सकता है अर्थात् कुछ नहीं कर सकता। प्र. 30. अत्यन्ताभाव से धर्म संबंधी क्या लाभ है ? प्रत्येक द्रव्य का दूसरे द्रव्य में त्रिकाल प्रभाव है / इसलिये एक द्रव्य अन्य द्रव्य की पर्याय का कुछ नहीं कर सकता है। उ०

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