Book Title: Jain Shwetambar Terapanthi Sampraday ka Sankshipta Itihas Author(s): Jain Shwetambar Terapanthi Sabha Publisher: Malva Jain Shwetambar Terapanthi Sabha View full book textPage 3
________________ स्वरूपको प्रकाशमें लानेका बीड़ा श्री श्री १००८ श्री भिखनजी स्वामीने उठाया। उनके परवर्ती स्वनामधन्य आचार्य्यगण अपने आचार व प्ररूपणासे जैनधर्मके महत्व, विशालत्व, निर्दोषत्व, अविसंवादित्व संसारके सामने रख तीर्थङ्कर भगवानके बचनोंको आदरके साथ अंगीकार करनेके लिये लोगों को उद्बुद्ध करते आये हैं एवं कर रहे हैं। __तेरापंथी मतकी उत्पत्ति व उसकी मान्यताके सम्बन्धमें बहुत-सी भ्रान्तधारणा लोक समाजमें फैली हुई है। उन भ्रान्त धारणाओंको दूर करनेके लिये इस पुस्तिकाका प्रकाशन किया जाता है । जन्म-जरामृत्यु-मय संसारसे मुक्ति पानेका उपाय ज्ञान, दर्शन, चारित्र एवं दान, शील, तप, और भावना है। तेरापंथी सम्प्रदायके साधुवर्ग उपदेश द्वारा, शास्त्रीय प्रमाण द्वारा व अपने जीवन-यापन-प्रणाली द्वारा इन उपायोंको किस प्रकार कार्यरूपमें लाया जा सकता है यह प्रत्यक्ष दिखा रहे हैं। . इस संक्षिप्त इतिहासके पहिले अङ्गरेजी भाषामें दो संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं। हिन्दी भाषा भाषियोंके लिये यह हिन्दी संस्करण है। इस मतका, इसके पूजनीय आचार्योका व इसके कुछ तपस्वी मुनिराजोंका संक्षिप्त परिचय मात्र इसमें दिया गया है। तेरापंथी साधुओंका आदर्श जीवन, उनका त्याग, उनका वैराग्य उनका ज्ञान उनकी विद्वता, उनकी प्रतिभा आदि गुणराशिका प्रकृष्ट परिचय उनके दर्शन व सेवासे मिल सकता है। पाठकगणसे निवेदन है कि दूसरोंके द्वेष पूर्ण प्रचारसे अपने विचारोंको दूषित न कर सत्यका अनुसंधान करें व गुणीजनोंका समुचित समादर कर उनसे उचित लाभ उठावें। __ अन्तमें निवेदन है कि छपाईका कार्य शीघ्रतासे करानेके कारण भूल चूक रह जानी सम्भव है आशा है पाठक उनके लिये क्षमा करेंगे। कलकत्ता । छोगमल चोपड़ा , माघ बदी ५-१६६२ ) अ० मंत्री, श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा।Page Navigation
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