Book Title: Jain Shwetambar Terapanthi Sampraday ka Sankshipta Itihas
Author(s): Jain Shwetambar Terapanthi Sabha
Publisher: Malva Jain Shwetambar Terapanthi Sabha

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Page 23
________________ ( २० ) ( ५ ) अपरिग्रह व्रत : - इस व्रत के अनुसार साधुओंको सब प्रकारके धनधान्यादि परिग्रह का त्यागी होना पड़ता है । वे किसी प्रकार की जायदाद नहीं रख सकते, न धन जेवर, दास दासी आदि ही रख सकते हैं । अपरिग्रह व्रतका मन वचन और कायासे पालन करना पड़ता है और जिस प्रकार वे स्वयं परिग्रह नहीं रख सकते उसी प्रकार दूसरों से भी परिग्रह नहीं रखवा सकते और न जो दूसरे रखते हैं उनका अनुमोदन कर सकते है। - उपरोक्त पाँच व्रतोंके अतिरिक्त एक छट्टा रात्रिभोजनत्याग व्रत भी साधुओंको पालन करना पड़ता है । इस व्रत के अनुसार साधु किसी प्रकारका आहार पाणी रात्रिमें - सूर्यास्त से सूर्योदय तक नहीं करते । मन वचन और कायासे उन्हें इस व्रतका पालन करना पड़ता है । जिस प्रकार साधु स्वयं सूर्यास्त के बाद किसी प्रकारका आहार नहीं करते उसी प्रकार न दूसरोंसे आहार करवाते हैं और न करने वाले का अनुमोदन करते हैं । यह छट्टा व्रत अहिंसाव्रतकाही अंग है । (ख) उपरोक्त छ: व्रतोंके अतिरिक्त साधुको निम्नलिखित पांच समितियोंको पालन करना पड़ता है : : e (१) इर्या: - इस समिति अनुसार मार्गमें चलते समय साधुको उपयोग पूर्वक आगेका मार्ग देख कर चलना पड़ता है । साधु रात में मलमूत्र त्यागको छोड़ दूसरे कार्यके लिये अछायामें नहीं जा सकते । ढके हुए स्थानमें भी विशेष, यत्न पूर्वक जयनाके साथ चलना पढ़ता है । उन्मार्गको छोड़कर सीधे सरल मार्ग पर ही चल सकते हैं । गमनागमन करते समय बहुत उपयोग और संभालपूर्वक गमन करना पड़ता है । जिससे कि सूक्ष्म से सूक्ष्म प्राणीको भी इजा ( कष्ट ) न पहुंचे । (२) भाषा - विचारपूर्वक सत्य, सरल, निर्दोष और उपगोगी वचन बोलना, अपने वचनों से किसीको कष्ट न पहुंचाना ! इस समितिका उद्देश्य

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