Book Title: Jain Shwetambar Terapanthi Sampraday ka Sankshipta Itihas
Author(s): Jain Shwetambar Terapanthi Sabha
Publisher: Malva Jain Shwetambar Terapanthi Sabha
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( ३३ ) सं० १८७३ से प्रत्येक चातुर्मासके समय उन्होंने बड़ी-बड़ी तपस्याएँ करनी शुरू की। उनकी तपस्याओंकी सूची नीचे दी जाती है :सम्बत
चातुर्मास जगह निरन्तर उपवास १८७३
सिरियारी १८७४
गोगुन्दा १८७५
पाली १८७६
देवगढ़
अमेट
१८७८ १८७६ १८८०
पाली
१८८१
पाली
७५,२१
१८८२ पाली
१०१ , १८८३ कांकरोली
१८६ , अन्तिम १८६ दिनोंका उपवास सं० १८८३ के जेठ बदी में आरम्भ किया था। प्रथम दिनके उपवासमें ही उन्होंने आचार्य श्री रायचन्दजी महाराजके सामने छः महीनेका निरन्तर उपवास एक साथ प्रत्याख्यान कर लिया। दो अन्य साधुओंने भी ऐसे ही उपवास पचखे। इनमें एकका नाम श्री वर्द्धमानजी महाराज और दूसरेका नाम श्री हीरालालजी महाराज था। ___ इस लम्बे उपवासके समाप्त होनेके एक महीने बाद ही स्वामी पृथ्वीराजजी महाराजका स्वर्गारोहण हो गया।
स्वामी पृथ्वीराजजीके समसामयिक साधु श्री शिवजी महाराज भी बड़े उप्र तपस्वी थे । वे बाफना वंशके ओसवाल थे। उनका जन्म मेवाड़के लव ग्राममें हुआ था। उनके उपवासोंका विवरण निम्न प्रकार है।