Book Title: Jain Shwetambar Terapanthi Sampraday ka Sankshipta Itihas
Author(s): Jain Shwetambar Terapanthi Sabha
Publisher: Malva Jain Shwetambar Terapanthi Sabha
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दाक्षिणात्य तक व कच्छ गुजरातसे मध्यप्रान्त तक बिभिन्न स्थानों में एक सूत्रसे,एक शासनमें, निर्विवाद, एक आचार्यकी आज्ञानुसार विचर रहे हैं।
जैन श्वेताम्बर तेरापन्थी साधुओंकी संख्या तेरापन्थी सम्प्रदायमें वर्तमानमें १४१ साधु और ३३३ साध्वियां विद्यमान हैं। उनमें १ साधु और ५ साध्वियां चतुर्थ आचार्य श्रीमज्जयाचार्यके समयके दीक्षित हैं । ५ साधु और १७ साध्वियां पंचम आचार्य श्रीमन्मघराजजी महाराजके समयके हैं। २ साधु और ८ साध्वियोंकी दीक्षा षष्ठाचार्य श्री माणकलालजी महाराजके समय हुई थी। १८ साधु व ७३ साध्वियां सप्तम आचार्य श्री डालचन्दजी महाराजके पास दीक्षित हुई थीं। वर्तमान आचार्य्यके दीक्षित ११५ साधु व २३० साध्वियां हैं।
इन ४७४ साधुसतियोंमें थली प्रान्तके ६७ साधु व २०६ साध्वियां हैं। मारवाड़के २४ साधु व ४६ साध्वियां हैं। मेवाड़के ३१ साधु व ५७ साध्वियां हैं। हरियाणेके १० साधु व ४ साध्वियां हैं। मालवेके ३ साधु व २ साध्वियां हैं। ढुंढाड़के २ साधु व ८ साध्वियां हैं। पंजाब प्रान्तके ३ साधु व ७ साध्वियां हैं । कच्छ प्रान्तके १ साधु हैं। ___ वर्तमानमें जो १४१ साधु हैं उनमें १०२ साधु अविवाहित अवस्थामें दीक्षित हुए, २० साधु विपनोक अवस्थामें दीक्षित हुए, १५ साधु स्त्री सहित साधु मार्ग में दीक्षित हुए और ४ साधुओंने स्त्री परित्याग कर दीक्षा ली। ३३३ साध्वियोंमेंसे ६३ साध्वियोंने कुमारी अवस्थामें ही दीक्षा ली, १६६ साध्वियोंने विधवा अवस्थामें दीक्षा ली, तथा २४ साध्वियां पति सहित और २० साध्वियां पति छोड़ दीक्षित हुई थीं। ___ यह सब साधु साध्वियों एक आचार्यकी आज्ञामें चल रही हैं। गत चातुर्मासमें विभिन्न प्रान्तोंके ८१ शहरोंमें इनका चातुर्मास हुआ। इन सबको अपने दैनिक कृत्योंका लिखित हिसाब आचार्य महाराजको देना पड़ता है । स्वयं धर्ममें बिचरते हुए भव्य जीवोंके आत्मिक उद्धारके निमित्त धर्मोपदेश देना ही इनके जीवनका एक मात्र लक्ष्य है।