Book Title: Jain Shwetambar Terapanthi Sampraday ka Sankshipta Itihas
Author(s): Jain Shwetambar Terapanthi Sabha
Publisher: Malva Jain Shwetambar Terapanthi Sabha
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माघ महोत्सव यह आचार्योंकी दूरदर्शिता का ही फल है कि प्रत्येक वर्ष समस्त साधु साध्वियोंके कार्यकलाप, आचार-व्यवहार, योग्यता आदिके निरीक्षणके लिये चातुर्मासके बाद माघ महीनेमें जहां आचार्य महाराज विराजते हों वहां समस्त साधु सतियांजी आकर श्री पूज्य आचार्यजी महाराजके दर्शन कर उनको अपने २ धर्म-प्रचार कार्यका परिचय देते हैं। माघ महोत्सव माघ सुदी ७ को होता है। जो साधु सतियां शारीरिक अशक्तताके कारण या प्रचार कार्यके लिये सुदूर प्रदेश विशेषमें आचार्य महाराजकी आज्ञासे विचरते रहने के कारण इस उत्सवमें सामिल होनेमें असमर्थ हों, उनको छोड़ बाकी सब साधु साध्वियां माघ सुदी ७ तक आ पहुंचते हैं। उसी दिन या उसके लगभग ही, भावी चातुर्मासमें कहां-कहां, किन-किन साधु, सतियों को प्रचारार्थ भेजा जायगा यह आचार्य महाराज श्रावकोंके अरज तथा अन्यान्य बातोंको बिचार कर स्थिर करते हैं । इस मौके पर बहुत श्रावक-श्राविकाएं जगह जगहसे आती हैं । एक ही जगह सैकड़ों साधु मुनिराजोंका दर्शन कर उनके संगठनका एवं परस्परके विनम्र भावका प्रकृष्ट प्रदर्शन देख हृदय स्वतः भक्ति व वैराग्य रससे प्लावित हो जाता है। जहां आज भाई-भाईमें कलह, पिता-पुत्रमें कलह, स्वजन-ज्ञातिमें कलह, वहां भिन्न-भिन्न स्थानके भिन्न-भिन्न वयस के, भिन्न-भिन्न परिवारके ४००।५०० साधु साध्वी कैसे एक सूत्रमें, एक आचार्यकी आज्ञामें, एक भगवदुभाषित धर्मकी छत्रछायामें, मुक्ति कामनाको एकमात्र लक्ष्य बना कर ज्ञान, दर्शन, चरित्रके आधार पर एवं दान, शील, तप, भावनाके बलसे अपनी आत्मोन्नति कर रहे हैं एवं साथ २ भव्यजीवोंको सदुपदेश देकर भव-समुद्रसे तार रहे हैं यह देखने और मनन करनेका विषय है। ऐसे पुनीत अवसर पर इतने पवित्र-मूर्ति महात्माओंके दर्शनसे हृदयके पातक दूरीभूत होते हैं। ऐसे महापुरुषोंकी वाणी सुन कर भव्यजीव कृतार्थ होते हैं । भरत-क्षेत्रमें, त्रितापदग्ध संसारी