Book Title: Jain Shwetambar Terapanthi Sampraday ka Sankshipta Itihas
Author(s): Jain Shwetambar Terapanthi Sabha
Publisher: Malva Jain Shwetambar Terapanthi Sabha

View full book text
Previous | Next

Page 22
________________ ( १६ ) बोलेगा उसका अनुमोदन करूँगा । इस प्रकार असत्य भाषणका त्याग कर लेने और सम्पूर्ण सत्य व्रतको अङ्गीकार कर लेने पर भी साधुको बोलते समय बहुत सावधानी और उपयोगसे काम लेना पड़ता है। सत्य होने पर भी साधु सावद्य पापयुक्त कठोर भाषा नहीं बोल सकते । उन्हें सदा असंदिग्ध, अमिश्रित और मृदु भाषा बोलना पड़ता है। जिस सत्य भाषणसे किसीको कष्ट हो या किसी पर विपत्ति आ पड़े वैसा सत्य बोलना भी साधुके लिए मना है । इसलिये कोई भी तेरा पंथी साधु किसीके पक्ष या विस्द्ध साक्षी नहीं दे सकते और न साधु किसी भी हालतमें मिथ्याका आश्रय हो ले सकते हैं। जहां सत्यवाद साधुके लिये अयुक्रिकर हो वहां वे मौन अवलम्बन करते हैं। (३) अदत्तादान विरमण व्रतः-इस ब्रतके अनुसार बिना दिये एक तृण भी लेना साधुके लिए महापाप है। साधुको प्रतिज्ञा करनी पड़ती है कि गाँवमें हो या जङ्गलमें, छोटी हो या बड़ी, कोई भी बिना दी हुई वस्तु वह न लेगा, न दूसरेसे लिरायगा, न लेते हुओंका अनुमोदन करेगा। इस व्रतके ही कारण जैन साधु बिना माता पिता स्वामी या स्त्री या अन्य सम्बधियों की आज्ञाके, दीक्षाके लिए तैयार होने पर भी, किसी व्यक्तिको दीक्षा नहीं देते । यह व्रत भी अन्य व्रतोंकी तरह मन वचन और कायासे ग्रहण करना पड़ता है। (४) मैथुन विरमण प्रतः-इस प्रतके अनुसार साधुको पूर्ण ब्रह्मचर्य रखना होता है । साधुको मन वचन और कायासे पूर्ण ब्रह्मचर्य पालनकी प्रतिज्ञा लेनी पड़ती है । वह देव, मनुष्य या तिर्यञ्च कोई सम्बन्धी मैथुन नहीं कर सकता, न करा सकता और न मैन संभोग वालाका अनुमोदना कर सकता है । स्त्री मात्रको स्पर्श करना साधुके लिए और पुरुष मात्रका स्पर्श करना साध्वियोंके लिए पाप है । जिस मकानमें साध्वियां या अन्य स्त्रियां रहती हों वहां साधु रात्रि वास नहीं कर सकते और न एकक स्त्रीके पास दिनमें ही वे ठहर सकते हैं।

Loading...

Page Navigation
1 ... 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50