Book Title: Jain Shwetambar Terapanthi Sampraday ka Sankshipta Itihas
Author(s): Jain Shwetambar Terapanthi Sabha
Publisher: Malva Jain Shwetambar Terapanthi Sabha
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( १७ )
दीक्षा लेने के बाद से देहावसान तक तेरापंथी साधुओं को निम्नलिखित शास्त्रोक्त व्रत और नियमों का पालन करना पड़ता है ।
संचालन करते हैं कि
( क ) साधुओं को पांच महाव्रत का पालन करना पड़ता है । (१) प्राणातिपात विरमण व्रत: - इस व्रत के अनुसार साधुको सम्पूर्ण अहिंसक बनना पड़ता है । साधु बनने के साथ ही उन्हें यह प्रतिज्ञा या व्रत लेना पड़ता हैं कि मैं जीवन पर्यन्त सूक्ष्म या बादर, त्रस या स्थावर किसी प्रकार के प्राणीकी हिंसा मन, बचन या कायसे नहीं करूंगा, न कराऊंगा और न करने बालेका अनुमोदन ही करूंगा । और वे केवल प्रतिज्ञा करके ही नहीं रह जाते परन्तु अपने जीवनको इस प्रकार जिससे वे इस नियम व व्रतको सम्पूर्ण रूपसे पालन कर सकें । गर्मी से गर्मी में भी वे पंखे से हवा नहीं लेते; ठण्डसे ठण्ड पड़ने पर भी तपनेके लिये आगीका सहारा नहीं लेते, भूखसे प्राण निकलते हों तब भी सचित्त वस्तु नहीं खाते । फूलको नहीं तोड़ते, घास पर नहीं चलते, सचित्त पानी का स्पर्श नहीं करते, इस प्रकार अपने जीवनको हर प्रकार से संयमी और अहिंसक बनानेके लिए असाधारण त्याग करते हैं । जैन साधु, सच्चे जैनसाधु, अहिंसाको सम्पूर्ण रूपसे पालन करने के लिए हर प्रकारका त्याग करते हैं यहाँ तक कि अपने प्राणों को भी उसकी साधना में नियोजित कर देते हैं । यही कारण है कि संसार में रहते हुए भी वे सम्पूर्ण अहिंसाका पालन कर सकते हैं। नीचे जैन साध्वाचारके कुछ ऐसे नियम दिये जाते हैं जिनसे पाठक समझ सकेंगे कि जैन साधु हिंसासे, सूक्ष्म से सूक्ष्म हिंसासे बचनेका किस प्रकार प्रयत्न करते हैं: -
(१) हिंसा से बचने के लिए जैन साधु खुद भोजन नहीं बनाते, न उनके लिए बनाये हुए, खरीदे हुए, देनेके लिए लाए हुए भोजनको लेते हैं। भिक्षा में अचित, प्राशुक और निर्दोष आहार पानीका संयोग मिलता है तो
उसे ग्रहण करते हैं अन्यथा बिना आहार पानीके ही सन्तोष करते हैं । कोई उनके लिए भोजनादि न बना लें इसके लिए वे पहलेसे कहते भी नहीं . कि वे किसके यहाँ गोचरी ( भिक्षार्थ गमन ) करेंगे ।
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