Book Title: Jain Shwetambar Terapanthi Sampraday ka Sankshipta Itihas
Author(s): Jain Shwetambar Terapanthi Sabha
Publisher: Malva Jain Shwetambar Terapanthi Sabha

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Page 19
________________ संसर्गमें जो आते हैं उनकी भक्ति उनके प्रति सहज ही हो जाती है। जैन शास्त्रोंके रहस्य और सच्चे अर्थको बतलाने में आपने भारतके दार्शनिकों को ही नहीं पाश्चात्य देशके विद्वानोंकी भी प्रशंसा प्राप्त की है। ___ जैन साहित्यके संसार प्रसिद्ध विद्वान् जर्मन देशवासी डा. हरमन चिकागो ( अमरिका ) युनिवर्सिटीके धर्मके अध्यापक जैकोबी जो कि कई वर्ष तक कलकत्ता विश्वविद्यालयमें जैन दर्शनके अध्यापक थे, आपके दर्शन किये थे और शास्त्रोंके कई रहस्योंको समझा था। चिकागो ( अमरिका ) युनिवर्सिटीके धर्मके अध्यापक डा० चालर्स डब्लू गिलकी भी आपके दर्शन कर प्रभावित हुये थे। अपने भाषणमें उन्होंने तेरापन्थी धर्मके सिद्धान्त और साध्वाचार सम्बन्धी नियमोंको भारत, यूरोप और अमेरिकाके अपने मित्रोंके सामने रखनेका विचार प्रकट किया था। तेरापन्थियोंके सैद्धान्तिक मतवाद __ श्री जैन श्वेताम्बर तेरापन्थीमतके अनुयायी मूर्तिपूजा नहीं करते और न मूर्ति पूजा करना मोक्षका साधन ही मानते हैं। वे तीर्थङ्करोंकी भाव पूजा या ध्यान करते हैं। जिन्होंने मोक्ष प्राप्त कर लिया है, या जिन्होंने संसार त्याग कर साधु-मार्ग स्वीकार किया है, एवं साध्वाचारका यथा रीति पालन करते हैं वे ही तेरापन्थियोंके बन्दनीय और नमस्य हैं । इस प्रकार मूर्ति पूजा न कर केवल गुण-पूजा करना ही तेरापन्थियों के सिद्धान्तकी विशेषता है। तेरापन्थी साधु लौकिक और पारलौकिक उपकारमें रात दिनका अन्तर समझते हैं। लौकिक उपकारकी ओर किंचित भी ध्यान न देकर आत्मिक उत्थान द्वारा नैतिक उन्ननि और पारलौकिक कल्याण सिद्ध करनेका रास्ता दिखलाते हैं। सांसारिक कार्योंके साथ वे कोई संसर्ग नहीं रखते और न उस सम्बन्धमें कोई उपदेश ही करते हैं। उनके सारे उपदेश धार्मिक होते हैं और केवल धर्म प्रचारके लिये ही उनका जीवन उत्सरं रहता है।

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