Book Title: Jain Shwetambar Terapanthi Sampraday ka Sankshipta Itihas Author(s): Jain Shwetambar Terapanthi Sabha Publisher: Malva Jain Shwetambar Terapanthi Sabha View full book textPage 2
________________ श्रीगुरवे नमः प्रस्तावना --crorसंसार अनादि है। जीव और कर्म भी अनादि हैं एवं उनका मिलाप अनादि कालसे चला आ रहा है। कर्मोंसे मुक्त होना ही जीवके लिये मुक्ति प्राप्त करना है। इस मुक्तिके मार्गको जैन धर्म अनादि कालसे बतलाता आ रहा है। . इस अनन्त और अनादि कालके प्रवाहमें नश्वर एवं अशाश्वत वस्तुओंका परिवर्तन सदा होता आया है, किन्तु शाश्वत वस्तु पर कालको शक्ति नहीं चलती। धर्म-सत्य, नित्य, शाश्वत एवं सनातन है। जैसे १+१ सब समयमें दो ही था, है और रहेगा, वैसे ही, अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य एवं अपरिग्रह सदासे धमका मार्ग माना गया है और माना जायगा-इसमें फेरफार नहीं हो सकता। यही कारण है कि जितने तीर्थङ्कर हो गये हैं सबकी एक ही धर्मदेशना रही है। जैनियोंमें मुख्य दो विभाग हैं-श्वेताम्बर व दिगम्बर। अरिहन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय व साधु यह पंच परमेष्टि समस्त संप्रदायों व विभागों को मान्य है। सब सम्प्रदायवाले हिंसामें अधर्म मानते हैं, राग द्वेषको कर्मोका बीज बतलाते हैं। सिर्फ जैन ही नहीं अन्यान्य मतोंमें भी राग द्वेषको दुःखका कारण बताया है । जैन धर्ममें अहिंसा सत्य अस्तेय ब्रह्मचय्य अपरिग्रहको नैसा उच्च स्थान दिया है वैसा अन्य मतमें भी है। धर्माचायंमात्र इन नियमोंको पालन करनेको कहते हैं। गृहस्थ जीवनमें भी इनकी उपादेयता स्पष्ट जाहिर है। जिस राष्ट्र, जिस देश व जिस समाजमें अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्या, अपरिग्रहके गुणोंका अधिक समावेश है वह राष्ट्र, वह देश, वह समाज नैतिक उन्नतिके साथसाथ सांसारिक उन्नतिके भी उच्च शिखर पर आरूढ़ हो सकता है। तेरापंथी सम्प्रदाय आधुनिक है पर इसके तत्त्व नवीन नहीं हैं। वास्तवमें जो नित्य, सत्य, शाश्वत जैन तत्त्व हैं वही इस सम्प्रदायके तत्व हैं। शताब्दियोंके पुंजीभूत विकारोको हटाकर जैनधर्मके सत्य, शाश्वत, सनातनPage Navigation
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