Book Title: Jain_Satyaprakash 1950 07 Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad View full book textPage 3
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra वन 45/9 वर्ष : १५ बैंक : १० www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ ॐ अर्हम् ॥ अखिल भारतवर्षीय जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक मुनिसम्मेलन संस्थापित श्री जैनधर्म सत्यप्रकाशक समितिनुं मासिक मुखपत्र जेशिंग भाईनी वाडी : घीकांटा रोड : अमदावाद (गुजरात) विसं २००९ : वीरनि. सं. २४७९ : ४. स. १८५० क्रमांक १७८ ५० भाषा हि ० )) : शनिवार : For Private And Personal Use Only ૧૫ જુલાઇ विसयनिंदाकुलयं । सम्पादक - पूज्य मुनिराज श्रीकान्तविजयजी पण मत्तु वी अरायं पंचसर - गईद - हणण - मयरायं . । वोच्छामि विसयनिंदाकुलयं भविआण कयपुलयं ॥ १ ॥ अबुहजणजणिअराया कडुअविवाया बुहेहिं कयचाया । मुहमेत्तविहिअहरिसा विसया किंपागफलसरिसा ॥ २ ॥ विसयासत्ता सत्ता पत्ता नरएस दुक्खघरएसु । विसर्हति वेअणाओ जाओ जाणइ जिणो ताओ ॥ ३ ॥ सरिसवमित्तं सुक्खं जीवा पावंति विसयसंजणिअं । दुक्खं पुण मेरुमहागिरिंदगरुभं चिअ लहंति ॥ ४ ॥ पुरिसा विसयपसत्ता मइरामत्त व्व इत्थ जिअलोए । विहवक्खयमवकित्तिं मरणं पि गणंति नो मूढा ॥ ५ ॥ विसया विसं व विसमा विसया वइसानरु व्व दाहकरा । विसया पिसाय - विसहर - वग्घेहिं समा मरणहेऊ ॥ ६ ॥ अहवा विसाइणो इह मरणकरा हुंति एगजम्मंमि । विसया उ महापावा अणेगजम्मेसु मारंति ॥ ७ ॥ हरिणो सद्दे सलहो रूवे भसलो अ गंधविसयंमि । मच्छो रसे गइंदो फासे गिद्धा विणस्संति ॥ ८ ॥ एक्केमि विसए लुद्धा निहणं गया इमे मुद्धा | कह पुण पंचसु गिद्धो न मरिस्सइ मयणसरविद्धो ॥ ९ ॥Page Navigation
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