Book Title: Jain_Satyaprakash 1947 08 Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad View full book textPage 3
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra वर्ष १२ अंक ११ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ॐ अर्हम् ॥ अखिल भारतवर्षीय जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक मुनिसम्मेलन संस्थापित श्री जैनधर्म सत्यप्रकाशक समितितुं मासिक मुखपत्र श्री जैन सत्य प्रकाश शिंगभाईकी वाडी : घीकांटा रोड : अमदावाद (गुजरात ) विभ स. २००३ : वीरनि. स. २४७३ : ४. स. १८४७ क्रमांक १४३ પ્રથમ શ્રાવણ વદ ૧૪ : शुडवार : ૧૫મી ઓગષ્ટ रखे श्रीकेसरियाजी तीर्थनो प्रश्न भूली जईए ! [ सम्पादकीय ] श्री केसरियाजी तीर्थ संबंधी अति दुःखदायक परिस्थिति ऊभी थयाने आजे बे मासथी वधु जेटलो समय बीती गयो, छतां ए सम्बन्धमा - ए दुःखदायक परिस्थितिने सुधारवा माटे - आपणे एटले के आखाय जैन संघे शां पगलां लेवां ए सम्बन्धी हजु सुधी कशो निर्णय aarat नथी ए हकीकत तरफ अमे समस्त जैन संघना सर्व आगेवानोनुं ध्यान दोरीए छीए. कोई पण प्रश्न निराकरणनी विचारणा माटे अमुक समयनी जरूर होय ए समजी शकाय एवी बाबत छे, पण ए विचारणाना समयनो पण अंत तो आववो ज जोईए ने ! के पछी आपणे विचार कर्याज करीए अने ऊभा थयेला प्रश्नो एम ने एम पड्या रहे ! जो आम ज थाय तो तो दीर्घसूत्री विनश्यति (केवल लांबा लांबा विचारो ज कर्या करनार छेवटे विनाशने जपामे) जेवी हालत थया वगर न रहे ए वात आपणे न भूलीए. For Private And Personal Use Only अमने लागे छे के आ प्रश्नना निराकरण माटे हवे तो पूरतो समय वीती गयो छे, अने हवे मां जे कई वधु कालक्षेप थशे ते संघना कल्याणने हानि पहेांचाड्या वगर नहीं रहे. एटले हवे तो आखा संघे एकदिल अने एकलक्षी बनी आ माटे एक या बीजो - योग्य लांगे तै- मार्ग निश्चित करीने ए मार्गे कुचकदम करवानी आखा जैन समाजने आज्ञा आपवी जोईए. आम नहीं था तो दुःखनुं ओसड दहाडा ए कहेवत प्रमाणे अमुक समय वीतशे एटले आपणी वेदना भुलाई जशे अने आपणा एक प्राणप्रिय तीर्थना रक्षणनी आपणी तमन्ना नामशेष थई जशे अने परिणामे आपणा एक महातीर्थने आपणे आपणी आळस के निष्क्रियताना कारणे गुमावी बेसीशु. कोई पण प्रकारनी आफत आवे ए कोईनेय इष्ट तो न ज होय, पण जो आफत आवी ज पडी तो पछी ए आफतमांथी संघ-संगठन साघवानो लाभ आपणे अवश्य मेळवी लेवो घटे;Page Navigation
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