Book Title: Jain_Satyaprakash 1947 08
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 16
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १६] www.kobatirth.org શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ नमूना कीलमुद्रा नं. १ ( ऊपरवाले टुकडे के बाहर की ओर ) चबो तंजकस ददव्य ( नीचे वाले टूकडे के अंदर की ओर ) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [વર્ષ ૧૨ महनुअव महरय लिहति चोम्बो तंजकस् मत्र देति स च अहोनो इश ल्पिषेय गरहति यथ एदस गवि २ सेनिये सचिचिये अगसितंति एक गवि पतम ओडितंति एक खयितंति एद विवद समुह अनद प्रोछिदव्य यथ धमेन निचे कर्तवो अत्र न परिबुजिशतु हस्तगद इश विसजिदव्य । अनुवाद - चोबो तंजक को दी जावे । .० महानुभाव महाराज लिखते हैं । चोबो' तंजक को मन्त्रणा देते हैं, और वह इस प्रकार - यहां ल्पियेय शिकायत करता है कि साच के सैनिक उसकी दो गायों क उठा कर ले गए-एक गाय पीछे लौटा दी, एक ( गाय ) उन्होंने खा ली । यह विवाद अपने सामने जांचना चाहिये और धर्मानुसार निश्चय करना चाहिये । वहाँ जो समझ में न आय, उसे यहां मेज देना । नं० ५४१ मटरगस्य प्रियदेवमनुष्यसंपूजितस्य योग्य दिव्य वर्षशतयु ममनस्य सुनांम परिकिर्तितस्य प्रच्छ देवतस्य महंत चोश्वो तंजकस्य पदमुलमि पोठंघ लिपपेय नमकेरो करेति दिव्यशरिर अरोगि प्रेषेति पुन पुनो बहु कोडि शतसहस्रनि अप्रमेगो तेन सुठ पतोस्मि यो तहि परिदे अरोग श्रुयति अहं चिश अरोगेमि तहि प्रदेन एवं च शिरस विवेम अहुंनो इमदे स्पस वनग मनुश विसर्जिदेमि सुपियन परिंदे स्पस रछंनय किं तत्र पडिवति सियति एमेव इश श्रुननय कर्तवो./ अनुवाद —— भट्टारक, देव- मनुष्यों के प्यारे और उनसे पूजित, योग्य - दिव्य - सौ बरस For Private And Personal Use Only ६ स्वरों का दीर्घत्व नहीं दिखलाया गया । ७ यह उपर के टुकड़े के बाहरका लेख है जो आजकल के कवर (लिफाफे ) के एड्रेस की भांति है ।

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