Book Title: Jain_Satyaprakash 1946 10
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
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શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ
[ વર્ષ ૧૨
कीर्तिरत्नसूरिके ही शिष्य थे, ऐसा इस विवाहल उके अंतमें निर्देश है। गुणरत्नसूरि विवाहलउके कर्ता पद्ममंदिर ऋषिमंडलवृत्तिके कर्ता ही हैं और वे भी गुणरत्नसूरि ( कीर्तिरत्न सूरिजीके पट्टधर ) के शिष्य थे । हीरानन्दसूरिकी रचनाओंके निर्देशमें कलिकालका उल्लेख है वहां "रास" शब्द और चाहिये ।
७. विवाह संज्ञक दो अन्य राजस्थानी जैनेतर रचनायें मेरे संग्रह में हैं वे हैं१ हरीजीका विवाहलउ (पद्ममंगलरचित) और २ गुणविजैविवाह ( मुरारिदासकृत ) । 1. विवाहसंज्ञक रचनाओं में जिनप्रभ ( आगमिक) कृत
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अंतरंग विवाह ' सबसे
प्राचीन है । पाटणसूचि पृ. २७२ ।
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९. हमारे संग्रह में अद्यावधि अज्ञात कई विवाहले उपलब्ध हैं जो इस प्रकार हैं(१) आर्द्रकुमार विवाहलउ गाथा २४ अज्ञातकर्तृक (प्रारंभकी ६ गाथा कम ) सं. १४९३ लिखित ।
(२) नेमिविवाहलउ गाथा २६ जयसागर सं. १५०५ लिखित ।
(३) शांतिविवाहलउ गाथा २७ तपोरत्न ( १६ शताब्दी)
(४) महाबीर विवाहलउ गाथा ३२ कीर्तिराज (कीर्तिरत्नसूरि) (१५वीं शताब्दी)
(५) शालिभद्रविवाहलउ लक्ष्मण सं. १५६८ लिखित ।
(६) शांतिनाथविवाहलउ गाथा २३ हर्षधर्म ( १६वीं शताब्दी) ।
(७) आदिनाथविवाहलउ गाथा २५ रत्नचन्द्र ( १६वीं शताब्दी) । (८) अजितशांति विवाहलउ गाथा ३२ मेरुनंदन (१५वीं शताब्दी) इनमेंसे नं. ६-७-८ को कहीं स्तवन, विनती आदि संज्ञा भी दी है १०. विवाहलउ संज्ञक रचनायें सबसे अधिक हमारे संग्रह में हैं ।
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एक सुझाव
विवाहलउ, फागु, संधि, वेलि आदि विविध नामवाली अनेक रचनायें जैन कवियोकी उपलब्ध हैं । उनका वास्तविक परिचय तो उन सबके सम्मुख होने पर ही मिल सकता है, अतः एक नामवाली जितनी रचनायें उपलब्ध हों उन सबका संग्रह कर स्वतंत्र रूपसे ग्रन्थ प्रकाशित करने की ओर जैन एवं गुजराती प्रकाशकोंका ध्यान आकर्षित किया है
नाता
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