Book Title: Jain_Satyaprakash 1946 10
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 24
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०वीं शताब्दीके दो काष्टोत्कीर्ण उपाश्रय लेख संपादक:-पूज्य मुनिमहाराज श्री कांतिसागरजी. मध्य प्रान्त और बरारमें जैन इतिहासोपयोगी अनेक महत्त्वपूर्ण साधनसामग्री अत्रतत्र त्रुटित दशामें पड़ी हुई है । कई तो संरक्षणके अभावमें नष्ट हो चुकी । शेष साधनका भी वही हाल होगा, यदि किसीने इस पर ध्यान न दिया तो। इस प्रान्तका यों ही संशोधन बहुत ही अल्प हुआ है, और जैन साहित्य इतिहास और कलाकी दृष्टि से आजतक यहां पर किसीने अन्वेषण ही नहीं किया; केवल कारंजाके ज्ञानभंडारका और मध्य प्रान्तमें भिन्न २ स्थानों पर अवस्थित हस्तलिखित ग्रन्थोंका सूचीपत्र डॉ. हीरालालजीने १८ वर्ष पूर्व किया था, जो सी. पी. गवर्नमेंटने प्रकट किया, पुरातत्वके यहां पर अनेक अवशेष मिलते हैं, जो न केवल जैन धर्म इतिहासकी दृष्टिसे ही महत्त्वपूर्ण हैं अपितु भारतीय उच्च कलाके परिचयका भी हैं । मुझे ऐसे अनेक खंडहर देखनेका सौभाग्य प्राप्त हुआ है । एतद्विषयक विशेष जाननेके लिये "मध्य प्रान्तमें जैन पुरातत्व" नामक निबंध देखें जो शीघ्र ही 'वर्णी अभिनंदन ग्रन्थ ' में प्रकट होगा। प्राचीन मूर्तिलेख भी यहां सैंकडोंकी तादाद में उपलब्ध हैं । मैंने सभीका संग्रह किया है। प्राचीन हस्तलिखित ग्रन्थोंकी संख्या ३००० तीन हजारसे कम नहीं है, जिनमें कई ग्रन्थ तो ऐसे भी हैं जो अन्यत्र अप्राप्य हैं। इस प्रान्तमें पहाडों और मार्गकी अनेक कठिनायोंसे जैन मुनियोंका विचरना बहुत ही कम होता है; यतियोंका निवास विशेष रूपसे है । २०ौं शताब्दीके अनेक आदेशपत्र यहांके ज्ञानभंडारमें देखनेको मिले हैं, जो मध्य प्रान्तके प्रमुख नगर-नागपुर, कामठो, अमरावती, रायपुर, एलिचपुर, हिंगणघाट आदि नगरोंसे सम्बंधित हैं। यतियोंने यहां पर रहकर अनेक महत्वपूर्ण जैन- जैनेतर साहित्य स्वहस्तसे लिखा और उसका संग्रह किया; इतना विशाल संग्रह जो आज मध्य प्रान्त और बरारमें उपलब्ध होता है वह यतियोंके ही सुप्रयत्नोंका फल है। ___यहां प्रकाशित दो लेखोंमें प्रथम लेखपट्टिका यतिवर्या राष्ट्रसेवी श्री यतनलालजीके पास है जो यहांके पुरातन मंदिर-उपाश्रयमें लगी थी। उस समय रायपुरको धार्मिक स्थिति अच्छी थी । सं. १९१३ में रत्नविजयजी-जों झंडेबाजके नामसे विख्यात थे-उन्होंने यहां पर दादावाडीमें धर्मनाथ स्वामीके मंदिरको प्रतिष्ठा करवाई थी, जैसा कि उनके ' उत्कर्षपत्र' से जामा जाता है। यह उत्कर्षपत्र अधावधि अप्रकट है । मध्य प्रान्तको तत्कालीन धार्मिक स्थितिका दिग्दर्शन पत्रसे भलिभाति हो जाता है। दूसरा लेख अमरावतीके प्राचीन उपाश्रयके व्याख्यान पीठके पीछे लगा हुआ है। अनजान को तो मालूम ही नहीं होता कि यह लेख है। इसका फोटो मेरे संग्रहमें For Private And Personal Use Only

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