Book Title: Jain_Satyaprakash 1944 04
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 8
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विच्छु શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ [ विक्रमीय १८ वीं शताब्दी के एक हस्तलिखित-पत्र में इस विषय का ऐसा भी उल्लेख मिलता है कितिर्यच वर्षायु तिर्यच वर्षायु तिर्यच वर्षायु | इस्वी की १३ वी सदी में श्रीहंसदेवरचित 'मृगपक्षीहाथीका १२० | बकरी | १६ पपैया सिंहका १०० सियार | १३ | तोता १२ | शास्त्र' में कुछ प्राणियों व्याघ्रका | ६४ बिल्ली का आयुथ इस प्रकार १२ सांप १२० बतलाया हैकच्छप ६ मास घोडाका सारस ६० कंसारी ४ मास गेंडा २२ वर्ष बैलका टोली १ जू भैंसका २ मच्छ १००० सिंह गायका सुसलिया १४ वागुल ऊंटका २५ मुरगा ६० गिरगट बकरा सूरका बुगला मृगका क्रौंच ६० मयूर मयूर गर्दभ घुग्घु ६६ मुरगी खरगोश समली ५० भालू (रोंछ) ३३ सूकर १० ,, कुत्ताका | १६ | चीबरी, ५ गीध . ११८ | चूहा ४ मास कुत्ता ४० गैंडाका उपरोक्त कुलक और तालिका में आयुष्य का जो फेर-फार विदित होता है वह क्षेत्रान्तर विशेष से समझना चाहिये । सामान्य रूपसे यह आयुष्य अधिक से अधिक बताया गया मालूम होता है। श्रीरत्नशेखरसूरिरचित — लघुक्षेत्रसमास ' ग्रन्थ में लिखा है कि मणुआउसमगयाई, हयाइ चउरंस अजाइ अद्वंसा । गोमहिसुट्टखराई, पणंस सागाइ दसमंसा ॥ ९८ ॥ अर्थात्-आरकों के अनुसार मनुष्यों का जितना आयुष्य होता है उतना ही आयुष्य हाथी, सिंह, अष्टापद आदि जन्तुओं का होता है। उनके चौथे भाग का अश्व आदि का; पांचवें भाग का गो, भैंस, ऊंट, गर्दभ आदि का; आठवें भाग का बकरा, घेटा आदि का; और दशवें भाग का श्वान (कुत्ते) आदि प्राणियों का आयुष्य अधिक से अधिक समझना चाहिये । For Private And Personal Use Only

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