Book Title: Jain_Satyaprakash 1943 07
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
शीलदेवसूरिविरचित “विनयंधरचरित्र"
लेखक :-श्रीमान् डॉ. बनारसीदासजी जैन, M. A., Ph. D.
[प्रोफेसर, युनीवर्सीटी ओरियंटल कालिज ] _ विनयंधरचरित्रको शीलदेवसूरिने सं० १६६४ में समाप्त किया जब वे धग्धर नदी पर बसे हुए सरस्वतीपत्तन अर्थात् सरसा (जिला हिसार)में विराजमान थे। उस समय सम्राट (जहांगीर) लाहौरमें ठहरे हुए थे। उन दिनों सरसामें जैनधर्मका बड़ा ज़ोर था ।१
“जैन ग्रन्थावली" तथा "जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास"में विनयंधरचरित्रका उल्लेख नहीं मिलता। जहां तक मुझे ज्ञात है, यह ग्रन्थ अभी तक प्रकाशित भी नहीं हुआ। अम्बाला शहरके श्वेताम्बर भण्डारमें इसकी एक प्रति विद्यमान है जो सं० १९६२में किसी प्राचीन प्रति परसे उतारी गई है। इस प्रतिके ५७ पत्र है। प्रत्येक पृष्ठ पर १४ पंक्ति, और प्रत्येक पंक्तिमें ४५ के लगभग अक्षर हैं । प्रथम पत्रका पूर्व पृष्ठ खाली छोड़ दिया गया है।
शीलदेवसूरि वृद्धगणीय भद्रेश्वर-शिष्य महेन्द्र-शिष्य मेरुप्रभ-शिष्य भावदेवके शिष्य थे। उन्होंने गद्यपद्यमय यह ग्रन्थ संस्कृत-प्राकृतमें लिखा है। एक स्थान पर कुछ हिन्दी पद्य भी हैं। आगमीय तथा दूसरे कुछ पाठोंको छोड़ कर शेष ग्रन्थ शीलदेवकी अपनी कृति है। इसकी ग्रन्थाग्रन्थ संख्या १. पूनानिशं यत्र जिनेन्द्रमन्दिरे सुश्रावकाः पौषधधारिणः परे।
श्रवत्परं व्रीहिमरश्च घर्घरे सरस्वतीपत्तनसंज्ञके पुरे ॥४६॥ स्नात्राणि प्रत्यब्दमहोमहोत्सवैः श्रीकल्पसूत्रश्रवणस्थितिः परा। सांवत्सरं पारण[क] गृहेगृहे श्राद्धैर्धनाढ्यैः सुकृताय दीयते ॥४७॥ शालो विशालो परिखासमन्वितः सब्राह्मणाः क्षत्रियवैश्यमागधाः। वणेतरा नातिरनेककर्मकृच्चारामिकाग्रामततिश्चतुर्दिशम् ॥४८॥ सत्षाष्ठिकागारुडशालिराशयः कासवाटीषु लताश्च सत्फलाः। पार्वे यदीये सघना Qमावली सरांसि पकेरुहपूरितानि वै ॥४९॥ सम्राजि तेजोभरपूरिते बरे मनोहरे लाभपुरे च तिष्ठति। अत्रत्य लोके धनधान्यसंकुले वसत्यजत्रं निरुपद्रवे सुखम् ॥५०॥ संवत्सरे चाब्धिरसतुचन्द्रमस्संख्येयके माधधमासि पश्चमी। तस्यां सतीन्दौ मघवाख्यभे शुभे योगे सुसिद्धे चरितं समर्थितम् ॥५१॥ २. “पञ्जाब जैन भण्डारसूचि,” लाहौर, सन् १९३९, पृ. ९७, १३७ ।
For Private And Personal Use Only