Book Title: Jain_Satyaprakash 1943 07
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
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અંક ૧૦] નામ ઓર મૂતિ ટને મંજુર હેને ચાહિએ [૩ર૧] जिन लोगोंने चंदन नमन किया और पुष्पवृष्ट्यादि उपचार किये है, इन्हें निष्फल कहना पडेगा, क्योंकि वह तो मात्र शरीरका हुआ, उससे तो साक्षात् भगवानको कुछ नहीं हुआ, तब तो फिर साक्षात् भगवानको किसीने वंदननमन उपचारादि किया ही नहीं ऐसा मानना पडेगा। इस प्रकार तो सारे जैनशासनको ही उड़ा दिया। हां, आप कह सकोगे कि वहां शरीर-आत्माका अभेद है, इसलिये वह सब पूजा उनकी है तो पैसा आप क्यों नहीं समझते ? अन्यत्र भी ऐसा ही है यह क्यों नही समजते ? शरीरके पास फूलादि वरसानेसे, क्या आत्माके उपर फूलादि चढ गये?। जिससे उनकी पूजा हो गई ? इसका जो उत्तर है वो ही मूर्ति के बाबत में भी है। 'मेरे विचारसे मूर्तिके बनिस्बत् प्रतिष्ठाचार्य अधिक पूजनीय होने चारीए, xxx गृहस्थको साधुके उच्च पद पर पहुंचानेवाले गुरु पूजनीय नहीं होते ? ' 'यह विचार भी अप्रस्तुत है। गृहस्थको साधुके उच्च पद पर पहुंचानेवाले गुरुने उसे अविधिसे पहुंचाया हो, या पहुंचाकर स्वयं भ्रष्ट हो गया हो तो क्या वह पूजनीय होता है? तब पहुंचानेवाला कौन है ? शास्त्रकी विधि है, वह सबके लिये पूजनीय है। और तुम्हारे विचारसे तो जो साधु होता है उसको वंदन करनेसे पहिले उनके मातापिताको वंदन करना चाहिए, क्यों उन्होंसे वह प्रतिष्ठित हुआ है। उनके वन्दनके पहिले उनके माता-पिताको वन्दन करना पडेगा। ऐसा होनेसे तो अनवस्था दोष आ पडेगा और कोई कार्य सिद्ध नहीं हो सकेगा।
इन सब दोषोंसे बचनके लिये जैसे नाम वैसे ही मूर्ति-ये दोनो मंजूर होने चाहिए।
(समान)
સામતિના પાંચ પૂનાં ચતુર્માસ : ૧. પરમપૂજ્ય આચાર્ય મહારાજ શ્રી સાગરાનંદસૂરીશ્વરજી મહારાજ,
જૈન ઉપાશ્રય, કપડવંજ. ૨. પરમપૂજ્ય આચાર્ય મહારાજ શ્રી વિજયલબ્ધસૂરીશ્વરજી મહારાજ,
1 उपाश्रय, १४ाली (A. P. Ry.) ૩. પરમપૂજ્ય આચાર્ય મહારાજ શ્રી વિજયલાવણ્યસૂરીશ્વરજી મહારાજ,
- જૈન ઉપાશ્રય, પાંજરાપોળ, અમદાવાદ. ૪. પરમ પૂજ્ય મુનિ મહારાજ શ્રી વિદ્યાવિજયજી મહારાજ,
21 3ाश्रय, हाम (A. P. Ry.) ૫. પરમપૂજ્ય મુનિમહારાજ શ્રી દર્શનવિજયજી મહારાજ,
ઉજમફઈની ધર્મશાળા, રતનપોળ, અમદાવાદ,
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