Book Title: Jain_Satyaprakash 1943 07
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 24
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [१२] શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ [१५८ लिखा है या किसी दूसरेके । पत्र देखकर सभी लोग चकित हो गये, क्योंकि अक्षर तो विनयधर ही के थे पर किसीको विश्वास न होता था कि विनयंधर भी ऐसा काम कर सकता है। लोगोंने राजाको समझाया कि विनयंधर बड़ा धर्मात्मा और सदाचारी है। वह ऐसा दुष्ट कार्य कभी नहीं कर सकता। यह निःसन्देह किसी कपटीका काम है। राजाने लोगोंकी बातको नहीं माना । उसने जबरदस्ती विनयंधरकी स्त्रियोंको अपने अन्तःपुरमें डाल लिया और विनयंधरके घरबारको मोहरबन्द कर दिया । __ अब रात्रिके समय राजा अपनी पाशवी तृष्णा मिटानेको विनयंधरकी स्त्रियोंके पास गजा। उन्होंने राजाको बहुत उपालम्भ दिया और कहा कि राजा तो प्रजाका रक्षक होता है, न कि भक्षक । इस प्रकारको भर्त्सना आदिमें रात व्यतीत हो गई और राजा लज्जित हो कर पीछे आ गया। जब प्रातःकाल उसने स्त्रियोंको राजसभामें बुलाया तब उसने देखा कि वे बिल्कुल कुरूपा हैं । राजाको अपने किये पर अफ़सोस हुआ। इतनेमें सूरसेनसरि नगरमें पधारे। राजा उनके दर्शनार्थ गया । सूरिजीने धर्मोपदेश दिया। तदनन्तर राजाने सूरिमहाराजसे पूछा कि धिनयंधरने कौनसा पुण्य किया है जिसके प्रभावसे इसने ऐसी ऋद्धि पाई है। इस पर सूरिजोने कहा कि विनयधरने अपने पूर्व जन्ममें तीर्थकर महाराजको दान दिया था, उसीका यह फल है। यह सुन कर राजाको वैराग्य हो गया। उसने अपने पुत्रको राज्यसिंहासन पर बिठलाया और आप दीक्षा ले ली। इधर विनयधर भी दीक्षा लेकर मोक्ष को प्राप्त हुआ। यद्यपि कथाकी दृष्टिसे यह ग्रन्थ कुछ अधिक रोचक नहीं, तथापि इसमें स्थल २ पर आये हुए दृष्टान्त और नीतिवाक्य बड़े सरस हैं। किसी आगामी अङ्कमें इनकी कुछ बानगी पाठकोंको भेट की जावेगी। ६, नेहरू स्ट्रीट, कृष्णनगर, लाहौर. સ્વીકાર ૧ સદ્ગતિની ચાવી–પૂ. મુ. મ. શ્રીમહિમાવિજયજીના ઉપદેશથી પ્રકાશક-શ્રીનસેવા सभा, वाया-मोडासा, टी. Y४ संध्या १७१. मेट. (भता तिलाल राय भु. सारा से आगे ०-१-१नी मोउसाथी भेट भणे .) (२) महावीर जीवन प्रभा (३) सप्तव्यसन परिहार-लेखक पूज्य मुनिमहाराज वीरपुत्र आनन्दसागरजी महाराज, प्रकाशक-वीरपुत्र आनन्दसागर ज्ञानभंडार, कोटा (राजपूताना) भेट । For Private And Personal Use Only

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