Book Title: Jain_Satyaprakash 1943 01
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
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जैन इतिहास में लाहौर
लेखक-श्रीमान् डॉ. बनारसीदासजी जैन, M. A., Ph. D.
[ गतांक से क्रमश : ले-खाङ्क २ ]
धर्मप्रभावना - जैनधर्म के महोत्सवों के महाराज | जिनप्रतिमा से संबन्ध मन्दिरप्रतिष्ठा, सामूहिक पूजा,
महोत्सव और जिनप्रतिमा और साधु महोत्सव मन्दिर निर्माण, अवसर पर मनाये जाते हैं और साधु महाराजों से संबन्ध महोत्सव उनकी दीक्षा, आचार्यपदप्रदान, स्वर्गवासादि के अवसर पर मनाये जाते हैं । आजकल जयन्ती, शताब्दी, जुबिली, वार्षिक संमेलन आदि के मनाने का रिवाज चल पड़ा है ।
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जो महोत्सव और धर्मप्रभावना लाहौर ने अकबर के समयमें देखे, वे शायद इसे फिर कभी नसीब नहीं हुए। उनमें से कुछ का उल्लेख नीचे किया जाता है१. अकबर का जिन-पूजा कराना - अकबर के बेटे सलीम के मूल नक्षत्र में एक लडकी पैदा हुई ज्योतिषियों ने बतलाया कि यह लडकी अपने माता पिता के लिये कष्टप्रद होगी, इसलिये इसका कुछ उपाय करना चाहिये । तब अकबर ने भानुचन्द्रजी से सलाह पूछी । भानुचन्द्रजी ने कहा कि " अष्टोत्तर शत स्नात्र पूजा कराने से मूल नक्षत्र का प्रभाव जाता रहेगा " इस पर सम्राट्ने हुकम दिया कि जो उपाश्रय अभी तैयार हुआ है उसमें फौरन जिनपूजा कराई जावे । पूजा का इन्तिज़ाम श्रावक थानसिंह के सुपूर्द हुआ । उपाश्रय के पास एक विशाल मंपड खडा किया कर्मचन्द को भी बुलाया । पूजा बड़े समारोह के साथ हुई । अपने सामन्तों और सलीम को ले कर बाजे गाजे के साथ धूम धाम और जनता की भीड़ हुई । पूजा की समाप्ति पर थानसिंह और कर्मचन्द ने अकबर को हाथी घोड़े भेंट किये। सलीम को एक बहुमूल्य हार दिया । स्नात्र पूजा का जल अकबरने अपनी आंखो को लगाया ।
गया ।
पूजामें
स्वयं
अकबर
आया ।
बडी
[ भानुचन्द्रगणिचरित, अध्याय २, श्लोक १४०-१६२ ] २. अकबर का जैन मुनियों को पदवी प्रदान - - जैन साधुओं के पाण्डित्य से अकबर इतना प्रसन्न हुआ कि उसने उन्हें अनेक पदवियां प्रदान कीं ।
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