Book Title: Jain_Satyaprakash 1941 12
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 11
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जैन आगमों के कछ महत्त्वपूर्ण विषय लेखक-श्रीयुत प्रो. जगदीशचन्द्रजी जैन, एम. ए. जैन आगमों का जैसा चाहिये वैसा व्यवस्थित अध्ययन अभी तक नहीं हुआ । इन ग्रन्थों में अनेक बातें ऐसी हैं जिनसे पूर्व काल की अनेक ऐतिहासिक समस्याओं पर प्रकाश पड़ता है और बहुतसी गुत्थियाँ सुलझती हैं। लोग पहले ज़माने में कैसे रहते थे, विवाह-शादी की कैसी प्रथायें थीं, दण्डविधान के क्या नियम थे, स्त्रियों का क्या स्थान था, वेश्याओं का क्या पद था, राज्यव्यवस्था के क्या नियम थे, जैन साधुओं को कैसे कैसे भयंकर कष्टों का सामना करना पड़ता था, जैन संघ को कायम रखने के लिये आचार्यों ने क्या क्या नियम बनाये थे, इत्यादि अनेक विविध बातों का वर्णन जैन आगमों में आता है । यदि इन आगमों का संकलन न किया जाता तो सचमुच भारत की एक बड़ी प्राचीन निधि का लोप हो जाता । यहाँ जैन आगमों के कुछ विषयों का दिग्दर्शन मात्र कराया जाता है। १ अन्तःपुर वात्स्यायन के कामसूत्र और कौटिल्य के अर्थशास्त्र में अन्तःपुर का वर्णन आता है । परन्तु जैन आगम साहित्य में जो अन्तःपुर के उल्लेख हैं, वे भिन्न प्रकार के हैं । निशीथचूर्णि में अन्तःपुर के तीन भेद बताये हैं-जीर्ण अन्तःपुर, नवान्तःपुर ओर कन्यान्तःपुर । जीर्ण अन्तःपुर उसे कहते हैं, जहाँ ऐसी स्त्रियां रहती हों जिनका यौवन ढल गया और अपरिभोग्य हों। नवान्तःपुर वह है जहाँ यौवनवाली परिभोग्य स्त्रियां वास करती हो । कन्यान्तःपुर वह है जहाँ अप्राप्तयौवना राजदुहितायें आदि रहती हों । किसी सुन्दर कन्या को देखकर राजालोग उसे कन्यान्तःपुर में रखवा देते थे। इस तरह के उल्लेख जैन और बौद्ध शास्त्रों में आते हैं । राजभवन में अन्तःपुर का स्थान विशेष महत्त्व का होता था । अर्थशास्त्र में कहा गया है हि प्राकार, परिखा, द्वार और कक्षाओं (ड्योढ़ी) से परिवेष्टित अन्तःपुर बनवाना चाहिये । बौद्ध जातकों के अनुसार अन्तःपुर में सोलह हजार नाटक-स्त्रियां (सोलसहस्सनाटकित्थियो) रहती थीं । इतने बड़े अन्तःपुर को वश में रखना बड़ा कठिन काम था। अतएव राजा को उसकी रक्षा के लिये बहुत से लोगों को नियुक्त करना पड़ता था । 'दंडधर' लोग हाथ में दंड लेकर अन्तःपुर की चारों ओर से रक्षा करते थे । 'दंडारक्खिअ ' लोग वे होते थे जो राजाकी आज्ञा से किसी स्त्री अथवा पुरुष को अन्तःपुर में ले जाते थे। कामसूत्र में बताया गया है कि संबंधियों और नौकरों को छोड़कर अन्य किसी को राजा के अन्तःपुर में जानेकी आज्ञा नहीं थी। ब्राह्मण लोग भी स्त्रियों को पुष्प देने के लिये अन्तःपुर में जा सकते थे, और ये लोग परदेमें से स्त्रियों से बातचीत कर सकते थे। जैन साधु और साध्वी भी धर्मकथा के लिये अथवा For Private And Personal Use Only

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