Book Title: Jain_Satyaprakash 1941 12
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 35
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४] સંખવાલ ગોત્રકા સંક્ષિપ્ત ઈતિહાસ [२८५] - कोचरशाहकी संतति क्रमशः बढती गई और कई स्थानोंमें जा फैली। उन स्थानोंके नाम इस प्रकार है:. जेसलमेर, महेवा, बीकानेर, पाटण, मेडता, जोधपुर, अहमदाबाद, वीसलनगर, इडर, अमरकोट, कोटडै, सिव, राधणपुर, भुज, मुलतान, विसालु, नांदिया, जालोर, भीनमाल, नाराणइ, पूनासर, किशनगढ, माहिम, आगरा, मैंगलवास, बाहडमेर, थिराक्षरा, पच्चाख, खांडप, वाघावास, सोजत, सांगानेर, नागोर, ब्रहसर, हाजीखांन, नखैनगर, मांगडौ, तलवाडा, राडदह, जसोलणपुर, वांसडी।। कोचरके वंशजोंके कुछ सुकृतोंका वर्णन हमारे संग्रहके पत्रानुसार इस प्रकार है:१ मानाके पुत्र सांडा और तोडोने सत्तकार-दानशाला खोली। उनके भाई - भांडाशाह-बीकानेरमें अद्वितीय त्रैलोक्यदीपक जैन मंदिर बना दिया। वह मंदिर बडा ही कलापूर्ण है अब भी वह भांडासरजीके नाम से प्रसिद्ध है। विशेष जानने के लिए हमारा "बीकानेरके जैन मंदिर" लेख जोकि आत्मानंद वर्ष ३-४ १, २, ११, १२ में प्रकाशित हुआ था, देखना चाहिए। ३ तोडोने संघ निकाला । ४ भांडा के वंशज श्रीमलने जोधपुरमें जैन मंदिर बनवाया। जैसलमेरके अष्टापद मंदिरकी प्रशस्तिमें कोचरशाहकी संततिके सुकृत्योंका वर्णन संक्षिप्तरूपमें इस प्रकार पाया जाता है । १ कोचरः-कोरटे और संखवालीमें उत्तुंगतोरण जैनमंदिर बनाये। आबू और जीरावला तीर्थकी संघसह यात्रा की। उदारतासे अपना द्रव्य परोपकारमें व्यय कर कोरटे में कर्णके समान यश प्राप्त किया। २ आसराजः-शत्रुजय तीर्थकी संघसह यात्रा की। ३ पांचा पुत्र गेलीने शत्रुजय, गिरनार, आबूकी यात्रा की, शत्रुजयादि तीर्थावतार पट्टिका वनबाई तोरण और परिकर सहित नेमिनाथ प्रभुका बिम्ब संभवनाथजीके मंदिरमें स्थापित किया। समस्त कल्याणकादि तपकी पाषाणमयी पट्टिका बनवाई। ४ आसराजके पुत्र खेलेने सं. १५११ में शत्रुजयकी संघसह यात्रा की। इसके बाद प्रत्येक वर्षमें वहाँकी यात्रा करते हुए तेरहवीं यात्रा सं. १५२४ में सविधि पूर्णकर बेलेकी तपश्चर्या की, २ लाख नवकारका जाप किया, चतुर्विध संघकी भक्तिमें बहुतसा द्रव्य व्यय किया। समस्त मारवाडमें रौप्य मुद्रासह लाडुओं को लाहण की। स्वर्णाक्षरी कल्पसूत्र लिखाया। जिनसमुद्रसूरिको आचार्यपद दिलवाया, पदस्थापना आपने करवाई । अष्टापद मंदिरके द्विभूमिका (दोमंजिल ) की जगति करवाई। ५ सं. लाखण और सं. खेताने मिलकर जेसलमेरके गढ़में दो मंजिला अष्टापद महातीर्थका मन्दिर बनवाया। सं. १५३५ के फाल्गुन शुक्ला ३ को For Private And Personal Use Only

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