Book Title: Jain_Satyaprakash 1941 12
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
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અંક ૪] જૈન આગમ કે કુછ મહત્ત્વપૂર્ણ વિષય [२६३) में नाई के उस्तरे आदि पर धार लगाने का काम होता था । ‘गंजसाला' में धान्य कूटे जाते थे । 'महाणससाला' में विविध अशन, पान आदि भोज्य तैयार किये जाते थे । 'कोठागार' में सत्तरह प्रकार के धान्य रहते थे। 'भंडागार' में सोलह प्रकार के रत्न रहते थे । 'पाणागार' में सुरा, सीधु, खंडन, मत्स्यंडिका, मृद्वीका आदि अनेक प्रकार की शराब मिलती थीं । 'खीरघर' में दूध, दही, मक्खन और मट्ठा मिलते थे। इसी तरह सुण्णसाला, तणसाला, तुससाला, जाणसाला, जुग्गसाला, उत्तरसाला आदि विविध शालाओं का निशीथचूर्णि में उल्लेख आता है । स्वयं हेमचन्द्राचार्यने पर्णशाला, चन्द्रशाला, कुप्यशाला, तैलिशाला, सूदशाला, हस्तिशाला, वाजिशाला, गोशाला, चित्रशाला, तन्तुशाला, नापितशाला, पानीयशाला आदि शालाओं का उल्लेख 'अभिधानचिन्तामणि' कोष में किया है ।
३ उद्यान-वन-कानन आदि पहले नागरिक लोग उद्यान-यात्रा के बहुत शौकीन होते थे। कामसूत्र में इन यात्राओं के अनेक उल्लेख आते हैं। लोग प्रातःकाल भोजन आदि साथ लेकर इन उद्यानों में क्रीड़ा के लिये जाते थे। ललितविस्तर नामक बौद्धग्रन्थ में बोधिसत्त्व के परिभोग के लिये कपिल वस्तु के इर्दगिर्द पांचसों उद्यानों के होने का उल्लेख आता है। लोग दिनभर इन उद्यानों में आमोद-प्रमोद करते, और शाम को घर लौटते थे । कभी तो लोग उद्यानयात्रा के प्रसंग पर वेश्याओं को भी साथ ले जाते थे। 'नायाधम्मकहा' में चम्पानगरी के दो सार्थवाह पुत्रों की कथा आती है। ये लोग देवदत्ता गायिका को लेकर सुभूमिभाग उद्यान में क्रीड़ा के लिये गये थे। इन लोगोंने उद्यान में क्रीड़ा के लिये वस्त्राच्छादित एक मण्डप तैयार कराया और वहां खूब आनन्द किया। उद्यानयात्रा के प्रसंग पर कुक्कुट, तावक, मेष आदि के युद्ध भी हुआ करते थे । और लोग पुष्करिणी आदि में जलक्रीडा किया करते थे। इन्द्रमह आदि उत्सव मनाने के लिये भी लोग उद्यान में जाते थे। जैन आगमों के टीकाकारोंने उजाण (उद्यान), आराम और णिजाण में परस्पर अन्तर बताया है। जहां पत्र, पुष्प, फल और छायावाले बहुत से वृक्ष हों, उसे 'उद्यान' कहते हैं । उद्यान में उत्सव-अनुत्सव पर लोग अच्छे अच्छे वस्त्रादि पहन कर भोजन साथ लेकर आमोद के लिये जाते हैं । उद्यान नगर के पास होता है और यान-वाहन का क्रीडास्थान होता है । 'आराम' नगर से बहुत दूर नहीं होता । तथा आराम में माधवी लतादि कुंजों में दम्पति क्रीड़ा के लिये जाते हैं । —निजाण' राजा आदि के लिये ही होता है, उसमें अन्य लोग नहीं जा सकते । इसी प्रकार वन, कानन आदि में अन्तर बताया गया है । जो नगर से दूर हो और जहाँ एक जाति के वृक्ष हों, उसे वन कहते हैं, जहाँ अनेक जाति के उत्तम वृक्ष हों, वह वनखंड' है, जहाँ वृक्षों की पंक्ति है उसे 'वनराजि' कहते हैं । अथवा जहाँ एक जातीय तथा अन्य वृक्षों की पंक्ति हो, उसे वनराजि कहते हैं । जहाँ सामान्य वृक्ष हों और जो
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