Book Title: Jain_Satyaprakash 1941 02
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 4
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ [१५१ ॥ ६८ ॥ ॥ ७० ॥ ॥ ७१ ॥ आघस्सयम्मि वुत्ता, पासाया सेणिअण कारषिया । गोभद्दजिणाययण, चरिए सिरिसालिभहस्स निम्मविओ नियहम्मे, पहुपासाओ पहाधईइ वरी । आवस्सयम्मि भणिओ, वग्गुरपासायधुत्ततो संपाजावडसमरा, कम्मासामंतिविमलधण्णासा। आमनिवइसिद्धाई, जिणगिहकाराघगा पए पेहडनाहडमंती, कुमारपालाहडाइललियाई । धणितेयवत्थुपाला, नयरिठभा मंतिदासाई तह हथिसोहसेट्ठी, मणसुहमाणिकलाल कम्मिद । लच्छीभाणीपमुहा, एए जिणगेहनिम्मघगा आमकुमारनरेसा, बभट्टामञ्चविक्कमा भीमा । अंबडमणसुहपमुहा, जिण्णगिहुद्वारगा एए मायरतित्थाईणं, धणिजमणाभाउसे द्विपमुहहिं । उद्धारो निम्मविओ, तेसिं सहलं धणं भणियं तस्थस्थ पईवनिहो, जिणागमा भावसुद्धिपषहदओ। दीवारष रुषमाणों, भवाभिणंदीणमइदुलहो आगमयमाणाओ, तिउडी बहुमाणमित्थ होज कयं । अहिओ केवलनाणा, मुणिभत्तनिदसणा भणिओं सामाइएण सिद्धा, अणंतजीवा अइंदियपयासी । कालाइ हेउ दोसा, से विच्छिण्णोत्ति कलिऊणं विहि गंथारूढी, नागज्जुणखदिलाइसूरीहिं । इय सड़ा भत्तीए. पलिहाविंति प्पमोएणं एवं कुणमाणाणं, गंधसजडत्तदुक्खमूयतं । सुयपाढगाइयाण, मत्तीइ हवंति मिद्धीओ इकारसंगसवर्ण, पासे सिरिधम्मघोसमूरीणं । विहियं सुयबहुमाणा, मंतीसरपेहडाई हिं आगमनिहिणो ठषिया, भरुअच्छाईसु सत्त खिसे में । इह दिटुंता णेया, कुमारपालाइ भघाणं घड्याइथियारेणं, संजमजुग्गा सयाइ वत्थूणं । घरणाहिलासितणया, इयाण इरिसेण दाणाओ निंदगनिवारणेण, कुन्जा भर्ति सुपत्तसाहणं । इय साहुणीण णेया, पुछामाइजोगेहिं ॥ ७३ ॥ ।। ७४ ॥ ॥ ७८ ॥ For Private And Personal Use Only

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