Book Title: Jain Satyaprakash 1940 06 SrNo 59
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 31
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मंत्रीश्वर शालाशाह लेखक-श्रीयुत हजारीमलजी बांठीया, बीकानेर राजपुताने के समस्त राज्यों के पुनीत इतिहास में राजनैतिक, सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक और सैनिक आदि अनेक क्षेत्रों में ओसवाल नररत्नों की गरिमा गौरान्वित है । डुंगरपुर राज्य के १६वीं शताब्दी के इतिहास में जिन जिन ओसवाल वीर रत्नों ने राज्य की महान् सेवायें की उनमें मंत्रीश्वर शालाशाह का स्थान उंचा है। आपकी यशःपताका आज भी श्री आंतरीगांव, डूंगरपुर और आबूस्थित अचलगढ में फहराती है और चिरकाल तक फहराती रहेगी। राजनैतिक क्षेत्र के साथ धार्मिक क्षेत्र में भी शालाशाह एवं उनके परिवारवालों को सेवा उल्लेखनीय है। - इसका अभी ठीक पता नहीं चलता है कि आप किस गोत्र के थे, मूर्तिलेख में चक्रेश्वरी गोत्र लिखा मिलता है। पर यह तो निर्विवाद सिद्ध है कि आप ओसवाल जाति के महाजन थे। आपके पिता का नाम सांभा और पिता. मह का नाम भंभर था । आपका नाम कहीं साल्हा और कहीं साल्हराज आदि लिखा मिलता है। आप राघल गोपीनाथ और सोमदास के मंत्री रहे । रावल गोपीनाथ के समय में वागड़ देश में भीलों की संख्या अधिक थी और वे बहुत उइंड थे, और बहुत उपद्रव मचा रहे थे । उपद्रव को मिटाने के लिये राघल गोपीनाथ ने अपने अमात्य सालराज (शालाशाह) को उनकी पालों का विजय करने के लिये भेजा । आपने जाकर भीलों की पालों को विजय कर वागड से भीलों का उपद्रव मिटा दियाx | संक्षिप्त में आप के लिए इतना ही कहना पर्याप्त होगा कि डुंगरपुर राज्य की सीमावृद्धि और रक्षा करने में आपका ही बहुत कुछ हाथ था। भाटोंने शालाशाह की कथा को डंगरपुर के रावल वीरसिंहदेव के साथ जोड दी है, परन्तु यह शालाशाह रावल वीरसिंह देव के समय में नहीं परन्तु उसके १५० वर्ष बाद गोपीनाथ और सोमदास के समय में हुवा था । इस लिए शालाशाह की कथा का वीरसिंहदेव के साथ मेल नहीं किन्तु गोपीनाथ या सोमदास के साथ है । आंतरीगांव के जैन मंदिर में वि. सं. १५२५ का शिलालेख लागा है जिसमें चूंडावाडा के भीलों पर आपके द्वारा विजय होने का उल्लेख है। इस शिलालेख से यह पाया जाता है कि शालाशाह गोपीनाथ और सोमदास का मंत्री था और शालाशाह की कथा वीरसिंहदेव के साथ न हो कर गोपीनाथ या सोमनाथ के साथ घटित x देखें, ओझाजी लिखित डुंगरपुर राज्य का इतिहास. पृ. ६६ For Private And Personal Use Only

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