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स १.] મંત્રીશ્વર શાલાશાહ
[3७१] का ऐतिहासिक सार लिख कर शीघ्रातिशीघ्र प्रकाशित करेगी और शाह की कीर्ति कौमुदी को बढायेगी । + '
इसके अतिरिक्त आपने कई मूर्तिये बनवाई थी, उनमें से कुछ आधु के अचलगढ के जैन मन्दिर में विद्यमान हैं ।
इस अचलगढ़ के मंदिर में आदिनाथ भगवान का १२० मण पीतल का विशाल बिंब है, जिस पर उक्त आशय का शिलालेख खुदा है
श्रद्धेय ओझाजी अपने डुंगरपुर राज्य के इतिहास पृ० ७० में इस शिलालेख का इस प्रकार आशय लिखते हैं:
" वि. सं. १५१८ वैशाख वदि ४ ( ई० स०१४६२ ता. १७ अप्रेल) x x कुंभलमेर महादुर्ग के स्वामी महाराणा कुंभकर्ण के राज्य समय अर्बुदाचल के लिये रावल श्री सोमदास के राज्य में ओसवाल जाति के शा साभा (शोभा) भार्या कर्मादे और पुत्र भाला तथा साल्हाने डुंगरपुर में सूत्रधार लूंचा और लापा आदि से आदिनाथ की यह मूर्ति बनवाई, जिसकी प्रतिष्ठा तपागच्छ के लक्ष्मीसागरमूरिने की।"
इसी प्रकार सेठ शालाशाह एवं उसके वंशवालों की धातु-प्रतिमायें वि. सं. १५१८, १५२५, १५२९ आदि संवतों की बनाइ हुई ४.५ प्रतिमाएं उपर्युक्त मंदिर में विद्यमान है और लक्ष्मीसागरसूरि के प्रतिष्ठा की हुई है।
___चूंडावाडा की पाल व डूंगरपुर के बीच थाणा गांव है, जिसे शालाशाह का निवासस्थान बताया जाता है। वहां शालाशाह ने एक विशाल मंदिर बनवाना शुरू किया था, जो अधूरा पडा है। ज्ञात होता है की मंदिर के आरम्भ करने के कुछ दिन बाद शालाशाह स्वर्गवासी हो गये, जिससे वह पूर्ण नहीं हो सका।
__यहां पर जो कुछ ज्ञात हुवा उसीके आधार पर शालाशाह का निबन्ध लिखा गया है । भविष्य में आशा है विद्वत समाज शालाशाह के वंश, गोत्र, बनवाई हुइ प्रतिमाएँ, म दिरों, वंशावलियों और शिलालेखों सहित परिशोध कर मंत्रोश्वर के जीवनपट पर विशेष झांकी डालने की चेष्टा करेगी और इसी प्रकार अन्य ओसवाल मुत्सदियों के जीवनचरित्र लिखकर प्रकाश में लावेगी।
+ यह लेख राजपुताना म्युजियम की रिपोर्ट ईस १९३० के पृ. ३-४ में प्रकाशित हुआ है।
x इन सब प्रतिमाओंके शिलालेख अबुद-प्रा. जै. लेख संदोह भा. २ मुनि जयन्तविजयजी संपादित में एवं मुनि जिनविजयजी संपादित प्राचीन लेख संग्रह में प्रकाशित हैं ।
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