Book Title: Jain Pilgrimage
Author(s): Hastinapur Jain Shwetambar Tirth Committee
Publisher: Hastinapur Jain Shwetambar Tirth Committee

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Page 34
________________ हस्तिनापुर कल्पः विविध तीर्थ कल्प वि० सं० १४६६ जिनप्रत्रसूरि विचरित भावार्थ :-- गयउर स्थित श्री शान्ति, कुन्थु, अर और मल्ली स्वामी को नमस्कार (वंदना करता हूँ) ।हत्थिणाउर (हस्तिनापुर) तीर्थ का संक्षेप में कल्प कहता हूँ ॥१॥ श्री आदि (ऋषभदेव) तीर्थकर के २ पुत्र थे। पहिले का नाम भरहेसर (भरत) और दूसरे का बाहुबलि था। भरत के ९८ सहोदर भाई थे, भगवान ने भरत को अपना राज्य दिया विनीता, बाहुबली को तक्षिला इसी प्रकार से अन्य पुत्रों को उन-उन के नाम के देश दिये। अंगकुमार के नाम से अंगदेश हुआ। कुरु के नाम से कुरुदेश प्रसिद्ध हुआ। इसी प्रकार वंगकलिंग-सूरसेण-अवंति बाँटे गये--कुरुनरेन्द्र का पुत्र हस्ति नाम - का राजा हुआ, उसने हस्थिणाउर (हस्तिनापुर). बसाया । जहाँ पर महानदि भागीरथी पवित्र जल सहित बहती है। वहाँ पर श्री शान्ति-कुंथु-अर सोलहवें, सत्रहवें, अठारहवें तीर्थंकरों ने जन्म लिया, जो क्रम से पाँचवें, छठे और सातवें चक्रवर्ती भी थे और भरतक्षेत्र की छ खाडों को ऋद्धि भोगनेवाले हए और जिनकी दीक्षा केवल ज्ञान भी वहीं पर हुआ। उस समय में युगलिये उत्पन्न होते थे। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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