Book Title: Jain Pilgrimage Author(s): Hastinapur Jain Shwetambar Tirth Committee Publisher: Hastinapur Jain Shwetambar Tirth CommitteePage 44
________________ 31. मांडवगढ़ के महामंत्री पेथडकुमार ने यहाँ का जीर्णोद्धार कराया था यह समय १४वी १५वीं शताब्दी का है। सम्मेत शिखर जी की यात्रा को जाते हुए श्री विजय सागर जी यहाँ यात्रार्थ पधारे, उन्होंने वि० सं० १६६४-१६६८ अपने ग्रंथ सम्मेत शिखर तीर्थमाला में हस्तिनापुर का वर्णन करते हुए लिखा है :--"पांच नमु थुमथापना, पांच नम जिन मूर्ति श्री सौभाग्य विजय जी ने अपनी तीर्थमाला सं० १७५० में लिखा : "थुत्र तीन विहां परमो सुगजो आणी प्रीत" श्री जिन चन्द्र सूरि जी भी यहाँ यात्रा के लिए पधारे थे इनका समय संवत १८०९ से १८५८ है। । परन्तु यह प्राचीन मन्दिर और स्तूप अब विद्यमान नहीं हैं-किन्तु श्वेताम्बर धर्मशाला के पास एक बड़ा टोला है उसके पीछे आमलियों को झाड़ियों में एक खाली मन्दिर पड़ा है और भी खंडहर है जो मन्दिर जैसे दीखते हैं। सतरहवीं और अठारहवीं शताब्दी में यात्रार्थ आये विद्वान यात्री जैन साधुओं ने वहाँ पाँच और तीन स्तूप होने का उल्लेख किया है। जंगल रूप बने हुए स्थान में इस समय मंगल रूप दो विशाल जैन मन्दिर हैं। एक श्वेताम्बर जैन मन्दिर और दूसरा दिगम्बर मन्दिर है। दोनों मन्दिरों के पास दोनों को अलग-अलग धर्मशालाये हैं। श्वेताम्बर मन्दिर से एक माइल उत्तर की ओर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.comPage Navigation
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