Book Title: Jain Pilgrimage
Author(s): Hastinapur Jain Shwetambar Tirth Committee
Publisher: Hastinapur Jain Shwetambar Tirth Committee
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श्री ऋषभ देव जी की टोंक बनी हुई है जो कि श्री ऋषभ देव जी भगवान के पारने का स्थान है यहाँ पर प्राचीन स्तूप हैं। और उसके पास ही श्री शान्तिनाथ जी, श्री कुंथु नाथ जी, श्री अर नाथ जी और श्री मल्ली नाथ जी की चरणपादुकाएं स्थापित है। आधुनिक जीर्णोद्धार सं० १९२९ में स्वर्गवासी श्री प्रताप चन्द जी पारसान कलकत्ता निवासी ने कराया है और प्रतिष्ठा भी जिन कल्याण सूरि जी को को हुई है । जिनकी व्यवस्था श्री हस्तिनापुर जैन श्वेताम्बर तीर्थ कमेटी अम्बाला शहर--देहली करती है। यहाँ से २-२॥ मील की दूरी पर श्री मल्ली नाथ जी की निशयाँ है। श्वेताम्बर मन्दिर और श्री ऋषभ देव जी की टोंक के बीच में श्री शान्तिनाथ जी, श्री कुन्थुनाथजी और अरनाथ जी की निशयाँ, स्तूप आदि स्थान आते हैं। जो दिगम्बरों के प्रबन्ध में है।
श्री जैन श्वेताम्बर मन्दिर में जगतगुरु श्री हीर विजय सूरिश्वर के शिष्य महोपाध्याय श्री शान्ति चन्द्र प्रतिष्ठत सं १६४५ के ज्येष्ठ शुक्ला ८ के दिन अकमीपुर (अमदाबाद का परा था) में प्रतिष्ठित श्री शान्तिनाथ जी मूलनायक विद्यमान हैं। इनके बाईं ओर की मूत्ति सं १६८२ में श्री विजय सेन सूरि जो प्रतिष्ठित हैं । १४-१५वीं शताब्दी को प्रतिष्ठित धातु की मूर्तियाँ हैं और संवत १९८३ को पूज्यपाद् आचार्यवर श्री विजय वल्लभ सूरि जी प्रतिष्ठित मूर्तियाँ भी विराजमान हैं। प्राचीन ४ स्तूप धर्मशाला के एक स्थान में सुरक्षित हैं।
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