Book Title: Jain Pilgrimage Author(s): Hastinapur Jain Shwetambar Tirth Committee Publisher: Hastinapur Jain Shwetambar Tirth CommitteePage 39
________________ परन्तु साधू लोग तो ऐसी चीजें ग्रहण नहीं करते हैं : इसलिये वह ऐसी वस्तु नहीं लेते थे। श्री ऋषभदेवजी पैदल विहार करते करते १ वर्ष बाद हस्तिनापुर पधारे। यहाँ बाहुबलि के पुत्र श्री श्रेयाँसकुमार के हाथ से इक्षुरस से बैसाख शुक्ला तृतीया को ४०० दिन के निर्जल उपवास के बाद पारणा किया। तबसे यह दिन अक्षय तृतीया (आखा तीज) पर्व के नाम से प्रचलित हुआ। जैन समाज में श्री ऋषभदेवजी की इस तपश्चर्या का अनुकरण रूप वार्षिकतर प्रचलित है और बहुत से साधू , साध्वी, श्रावक, श्राविका वार्षिक तप करते हैं। __ जैन धर्म में चौबीस तीर्थङ्कर हुए हैं जिनमें से सोलहवें श्री शान्तिनाथ जी, सत्तरवें भी कुंथुनाथ जी और अठारवें श्री अरनाथ जी तीनों तीर्थंकरों के च्यवन, जन्म, दीक्षा और केवल ज्ञान, ४-४ कल्याणक इसी पवित्र भूमि में हुए हैं। तीनों तीर्थंकर पाँचवें, छठे और सातवें चक्रवर्ती भी थे। इनके अलावा चौथे चक्रवर्ती सनतकुमार आठवें सुभूम और नवें महापद्म भी यहीं हुए हैं अर्थात बारह चक्रवत्तिओं में से छ (६) चक्रवर्ती और तीन तीर्थंकरों के होने का सौभाग्य इसी पुण्य भूमि को प्राप्त है। 'भारत के इतिहास में ऐसा अपूर्व सौभाग्य शायद ही किसी नगर को मिला हो। उस समय इस नगरी का प्रताप मध्याह्न सूर्य के समान चमकता था। छ खंडों में इस नगर के राजाओं का प्रभाव था और लक्ष्मीदेवी का यह कोडास्थल था ऐसे ही पाँच Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.comPage Navigation
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