Book Title: Jain Pilgrimage
Author(s): Hastinapur Jain Shwetambar Tirth Committee
Publisher: Hastinapur Jain Shwetambar Tirth Committee

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Page 37
________________ 26 अज्ञान तिमिर तरणि, कलिकाल कल्पतरु, पंजाब केसरी आचार्यवर्य श्रीमद् विजयवल्लभ सूरीश्वर जी महराज का श्री हस्तिनापुर तीर्थोद्धार के लिये। शुभ संदेश श्री हस्तिनापुर तीर्थ प्राचीनतर है, इसमें कोई संदेह नहीं है। परमवंदनीय, पूजनीय, आराधनीय, तारणहार त्रैलोक्यनाथ श्री तीर्थ कर देवों के और अन्यान्य ऋषि, महषियों के पुनीत चरण कमलों से यह भूमि पुनीत (पवित्र) हुई है, इसको धूलि भी शिरसावंद्य है। इस परम पुनीत तीर्थ का जीर्णोद्धार कराना परम आवश्यक है। अतः समस्त श्री जैन संघ को धर्म लाभ के साथ हमारा यही शुभ-संदेश है कि इस तीर्थ के जीर्णोद्धार के कार्य में हरएक भाग्यवान् को यथाशक्ति तन, मन, धन से मदद देकर अपने कर्तव्य का पालन करते हुए पुण्योपार्जन करके सद्गति के भागी बनें और तीर्थ की जहो जलाली करें। ___ आचार्य, उपाध्याय, प्रवर्तक, पन्यास आदि सकल श्रमण श्रीसंघ से नम्र निवेदन है कि आप अपने सदुपदेश द्वारा सहायता करायेंग--ऐसी आशा ही नहीं विश्वास है । सुज्ञेषु कि बहुना। ___ पू० पा० श्री आ० भ० की आज्ञा से लिपं० समुद्र विजय पालीताणा, श्री आत्मानंद पंजाबी जैन धर्मशाला, वीर सं० २४७७, वि० सं० २००८ भाद्रपद कृष्ण ५ मंगलवार, ता० २१-८-५१ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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