Book Title: Jain Pilgrimage
Author(s): Hastinapur Jain Shwetambar Tirth Committee
Publisher: Hastinapur Jain Shwetambar Tirth Committee

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Page 38
________________ श्री हस्तिनापुर तीर्थ मुनि दर्शनविजय त्रिपुटी हम यहाँ सुज्ञ पाठकों के लिये श्री हस्तिनापुर तीर्थ का इतिहास संक्षिप्त रूप में देते हैं। इस तीर्थ का प्राचीन इतिहास जैन, बौद्ध और वैदिक साहित्य में विपुल परिमाण में उपलब्ध है। परंतु हम यहाँ जैन साहित्य के आधार ही पर लिखते हैं। ____ आदि युग में प्रथम धर्मनायक श्री ऋषभ देव जी के पुत्र भरतराज के नाम से अपने देश का नाम भारतवर्ष पड़ा। उन्होंने अपने २१वें पुत्र कुरुराज को यह एक प्रदेश दिया था कुरुराज ने अपने नाम पर इस क्षेत्र का नाम कुरुदेश रक्खा । कुरु का पुत्र हस्तिकुमार था। अतः उसने अपनी राजधानी का नाम हस्तिनापुर रक्खा । ___प्राकृत और संस्कृत ग्रथों में हस्तिनापुर का हत्थिणाउर, हत्थिणापुर, गयउर, गजपुर, गजनगर गजाह्वय, नागाह्वय, नागपुर और हस्तिनापुर आदि नामों में उल्लेख है। . श्री ऋषभदेव जी ने विनीती (अयोध्या) के उद्यान में चार हजार राजकुमार और राजाओं के साथ दीक्षा ली और भूतल में प्रथम साधु विहार प्रारंभ किया। इनके समय में सब युगलोक (युगलये) लोग थे। इसी कारण वह इनको होरा, माणिक, मोती, हाथी, घोड़े और पुत्र को दान स्वरूप देते थे। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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