Book Title: Jain Meghdutam ka Samikshatmaka Adhyayan
Author(s): Sima Dwivedi
Publisher: Ilahabad University

View full book text
Previous | Next

Page 216
________________ 206 सर्वाङ्गीण होते हैं तथा एक अविच्छिन्न वस्तु व्यापार का प्रतिपादन करते है। बिम्ब अनेकार्थ व्यंजक होते है तथा काव्य के जीवन्त तत्त्व माने जाते है। अतः उत्कृष्ट कलाकृति योजित बिम्बो के द्वारा अपने क्षेत्र मे आयी हुई वस्तुओं को गेटे के कथनानुसार कंक्रीट युनिवर्सल बना देते हैं। काव्य सौन्दर्य की दृष्टि से बिम्ब योजना का महत्त्वपूर्ण स्थान है। जैनमूघदूतम् मे आचार्य मेरुतुङ्ग ने बिम्बों का प्रयोग अत्यधिक कुशलता से किया है। इन्होने प्राकृतिक बिम्ब सामाजिक बिम्ब, ध्वनि बिम्ब, गंध एवं स्पर्श बिम्ब आदि सभी प्रकार के बिम्बों को अपने काव्य मे स्थान दिया है। कवि ने अपनी कल्पना को बिम्बो के माध्यम से मूर्त रूप प्रदान किया है इनके काव्य में काल्पनिक बिम्बो का आधिक्य है। कवि ने बिम्बों का चयन प्राकृतिक क्षेत्र से अधिक किया है। कवि ने जीवन के शाश्वत मल्यो को बिम्बों के माध्यम से व्यक्त किया है। काव्य मे स्पष्ट और यथार्थवादी बिम्बों का प्राधान्य है। कवि ने सूक्ष्म से सूक्ष्म तथा स्थूल से स्थूल भावों को बिम्बों के माध्यम से वर्णन किया है। जैनमेघदूतम् के प्रथम सर्ग में एकस्थान पर ध्वनि बिम्ब प्रतिबिम्बित होता है नीली नीले शितिलपयन वर्षयत्यनुवर्षन् गर्जत्यस्मिन् पटु कटु रटन् विद्ययत्यौष्ण्यर्मियन्।।' उपर्युक्त श्लोक में मेघ का गरजना तथा विरहिणी स्त्रियों के चातुर्य पूर्ण कटु विलाप द्वारा ध्वनि बिम्ब व्यञ्जित होताहै। निम्नलिखित श्लोकों में सामाजिक प्रतिबिम्ब की झलक मिलती हैकृष्णो देशप्रभुरभिनवश्चाम्बुदः कालिमानं जैनमेघदूतम् १/६

Loading...

Page Navigation
1 ... 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247