Book Title: Jain Meghdutam ka Samikshatmaka Adhyayan
Author(s): Sima Dwivedi
Publisher: Ilahabad University

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Page 217
________________ न्यध्यासस्ते तदवगमयाम्येनसैवार्जितेन । तत्रैकोऽस्मत्पतिविरचिता श्रेषपेषानिषेधा दन्योऽस्माकं गहनगहने विप्रयोगेऽग्निसर्गात् । ' इसी प्रकार निम्न श्लोको मे श्री कृष्ण की पत्नियाँ श्री नेमि को पाणिग्रहण करने के लिए आग्रह करती है इसमें भी सामाजिक बिम्ब द्रष्टव्य है १ प्रकृति बिम्ब से तो मानो पूरा काव्य ही भरा पड़ा है। प्रकृति से ग्रहीत सुन्दर बिम्बो का उदाहरण द्रष्टव्य है २ रूपं कामस्तव निशमयन् व्रीडितोऽभूदनङ्गो लावण्यं चाबिभ ऋभुविभुर्लोचनानां सहस्रम् । तारूण्यश्रीव्यशिषदथ ते पुष्पदन्तौ शरद्वन्नेताऽरण्यप्रसवसमतां त्वं बिना स्त्रीरमूनि । । ' उत्तस्थेऽथो सपदि गदितुं वाग्मिसीमा सुसीमा धीमन । पश्याकल इव गृही न प्रणाप्यः । तत्वं तन्वन्ननु गुरूगिरा स्वद्वितीयां द्वितीयां प्राप्स्यस्यग्र्या विधुरिव कलाः सर्वपक्षे वलक्षे । ' ३ 207 वानस्पत्या: कलकिशलयैः कोशिकाभिः प्रवातैः स्तस्याराजन्निव तनुभृतो रागलक्ष्मीनिवासाः । जैनमेघदूतम् १/५ जैनमेघदूतम् ३/८ जैनमेघदूतम् ३/११


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